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थे मुनि मल्लिसागर जी साथ, जिनने दीक्षा ली आप हाथ ।। विद्या उन्नति बहु आप कीन, जनता कू हित उपदेश दीन। करते विहार बहु पुर मझार, इक नग्न महेश्वर में सिधार।। तहाँ पंच दिवस उपदेश कीन, जनता ने कुछ व्रत नियम लीन। मेवाड़ प्रान्त कीनो सुधार, उपदेश दियो करके विहार ।। सब जगह प्रान्त बागड़ मझार, कीना शिक्षा का अति प्रचार । उन्नीस शतक अट्ठाणु साल, गुरु शान्तिसिन्धु आये खुशाल।। किया ऋषभदेव में चतुर्मास, भविजन की पूरी करी आश। केवल भक्ति आवेश आय, यह नई रची गुणमाल गाय।। कुछ भूल चूक यामें जो होय, सब क्षमा करो आचार्य मोय। यह गुणमाला, विविध रसाला, भक्तिभाव से, पूज करें। विष्णू ने गाई, मन हुलसाई, पूज्य श्रेष्ठ, हम भाव धरें ।। ॐ ही आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यो पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा।। श्रेष्ठ भाव को धार मनुज पूजन करें,
गण को गावें भक्तिभाव हिरदे धरें। धन धान्यादिक होय. अमंगल सब हरे.
सो नर सुख को भोग, बहुरि शिवतिय वरें।।
इत्याशीर्वाद
शिष्यों को अर्घ
प्रथम शिष्य श्री सूर्य हैं, दूजा ज्ञान भण्डार। तीजा मुनि श्री मल्लि हैं, वीर श्री गुणधीर।। धर्म आदि क्षुल्लक श्री, निज निधि करे विचार।
ब्रह्मचारी ब्रह्मचारिणी, संघ चतुरविधि धार।। ॐ हीं चतुर्विधसंघेन्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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