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छाणी के आचार्य मुनीश्वर श्री शान्तिसागर बन्दन
पावन जैन दिगम्बर साधु महायति इन्द्रिय जेता, मोक्षमार्ग के परम पथिक हैं धन्य मुनीश्वर विजयेता, निर्ग्रन्थ दिगम्बर पावन मुद्रा, नमन गुरुवर अभिवन्दन,
छाणी के आचार्य ऋषीश्वर नम शान्तिसागर वन्दन |1|| उसी काल के मुनि श्री, जो दक्षिण के पावन अभिराम, वे भी आचार्य गुरुवर, शान्ति के सागर शुभनाम, कैसा पावन योग बना है, दोनों अनुपम महायति, एक बने दक्षिण के देवा, दूजे उत्तर महानपि ।।2।।
दोनों की अद्भुत है महिमा, निर्विकार थे अप-ग्रही, दोनों में था नेह धर्म का, कठिन मार्ग के मुनि व्रती, आचार्य श्री शान्तिसागरजी, जनम उदयपुर की 'छाणी',
पावन संवत 19 सो 45. दिव्य उदय वाणी ।।3।। पिता श्री भागचन्द अनोखे, भाग्य उन्हीं का था जागा, माणिक बाई मात जिनकी मणिमय अनुपम सुत पाया, घर में इनका नाम नेह से, केवलदास' कहा करते, तीर्थकर के दास बने थे, केवल धन्य महान वे थे ।।4।।
नेमिश्वर की जग असारता का चरित्र सना केवल, नहीं सार है जग में कोई, मोही क्यों मन है पागल, मध्यरात्रि में देख स्वप्न में श्री सम्मेदशिखर यात्रा,
बाहुबली गोम्मटस्वामी की, चरण वन्दना शुभ यात्रा ।।5।। तभी श्री की वीतरागता, उभर चली केवल के तन, बाल ब्रह्मचारी ही रहकर, कामदेव को जीता मन, करी वन्दना शिखरराज की, और परिग्रह का कर त्याग, गढ़ ग्राम में पहुंचे केवल, सोचा राग ज्वलंत है आग ।।6।।
ऋषभदेव की प्रतिभा आगे क्षुल्लक दीक्षा ले ली जिन, केवल से शान्तिसागर थे, वीतरागता पावन गिन, संवत् अठरह सौ 80 में, पहुंचे सागवाड़ा महाराज, भाद्र सुदी चौदस के दिन में, बने मुनिश्वर ऋषि सरताज In IIST
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृत्ति-अन्धी
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