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4514545454545454545454545454545 4 और उनके दर्शनार्थ हेतु जन-समूह आनन्दभाव से दौड़ पड़ते हैं, जिन्होंने 卐
अपनी शिक्षा-दीक्षा से शान्ति के शासन की आशा एवं आभा को दिखलाया है. वे निश्चित ही जैनीश्वरी दीक्षा से शोभा को प्राप्त करते हैं। मणोहंस
जह आय-संति-महंत-साहुवियावरे तह सव्व चारु-चक्कवरी-मणि-संतिणो। इग एव ठाण-गुरू विराजदि राजदे
सद-भत्ति-सद्ध-महंत-छाणि-विसायरे।।9।। जैसे ही दोनों महान शान्ति के धारक सन्तों का व्यावर नगर में आगमन हुआ, वैसे ही सभी जन एक स्थान पर शान्तिसागर छाणी और चारित्र चक्रवर्ती शान्तिसागर मुनि के दर्शन हेतु उमड़ पड़ते। महान श्रद्धा एवं भक्ति के साथ अपनी महान आत्मा को पहचानने में प्रवृत्त होती है।
मालव-सुरम्म-देसे, इंदूर-णयरे चउमास-समए।
विविह-पण्णा-जणेसं, सत्थ-सिद्धत-रहस्से मग्गो।। 10 || वे शान्तिसागर मालव के सुरम्य प्रदेश के इन्दौर नगर में चार्तुमास के समय विविध विद्वानों से शास्त्र-सिद्धान्त के रहस्य में प्रवृत्त हुए।
ललिदपुर-गिरीडीहे. परदापुर-ईडर-सगवाड़ाए। पुण इंदूर-ईडरे, णसीरवाद-वियावरे च ।। 11 ।। सागवाडा-उदयपुर-ईडर-गलियाकोडे महणयरे।
पारसोला-भिण्डरम्मि, तालोद-रिसह-दिसह संलंबरे ।। 12 ।। ___ आपने ललितपुर, गिरीडीह, परतापुर, ईडर, सागवाड़ा पुनः इन्दौर, ईडर C में चातुर्मास किया। नसीराबाद, ब्यावर, सागवाड़ा, उदयपुर, ईडर गलियाकोट, - पारसोला, भिण्डर, तालोद, ऋषभदेव पुनः ऋषभदेव और सलुम्बूर आदिस्थानों पर चातुर्मास किये।
तेणं पहावेणं च, चउबिह-समाजम्हि सामंजस्सो।
जादो धम्मबुद्धी च, दाणं सत्थ-णाणं-बहावणं।। 13 || उनके प्रभाव से चतुर्विध समाज (संघ) में सामंजस्य, धर्मबुद्धि, दान, ज्ञान, शास्त्र के प्रति अभिरुचि भी उत्पन्न हुई।
___ महव्वय-रहो संती, एगंते केसढुंचं वेतणजुत्तं ण मिच्चं।
पत्त-परिक्खा-पुव्वं, असणं लेंति देंति दिक्खं वि।। 14 ।। - वे शान्तिसागर महाव्रत में रत एकान्त में केशलोंच करने, वेतनयुक्त नौकर ।
नहीं रखते, पात्र परीक्षा पूर्वक आहार लेते और दीक्षा भी देते हैं।
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1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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