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संति-संस्मरण
हीरछंद
कम्मदलणं सोम्म-धरण चंदकिरण राजदे केवलकिरणं मधुर भावे पडिदिण-पभादे। णं सुमहर-विंद-भमर-धम्म-धरण गम्मदे
राग-दलण सम्म-सरण-केवल-सद-भासदे।।1।। __केवलदास प्रतिदिन कर्मो का क्षय करने के लिए चंदकिरण की सोम्यता को धारण कर मानों केवल किरण रूपी मधुर-भाव में प्रातः काल से लेकर सान्ध्य तक भ्रमर समूह की तरह धर्म धारण करने के लिए ही श्री प्रवृत्त होना
चाहता है। राग की समाप्ति ही साम्यभाव की एकमात्र शरण केवलज्ञान रूपी 51 श्रुत से भासित होती है। सुसमा छंद (सुषमा छन्द)
गामे रमदे सम्मेदचला, अक्खाण-रदा सम्मत्तगदा।
रत्ती-असणं चागं पढम, सज्झाय-णिमित्तं भत्ति-बंद।। 2|| केवलदास ग्राम में रहता है, सम्मेदशिखर की ओर सम्यक्त्व से पूर्ण कथाओं को सुनकर उस ओर चलना चाहता है। इसलिए वह सर्वप्रथम रात्रि भोजन का त्याग करता है फिर स्वाध्याय हेतु भक्ति में रत होता है। । इन्द्रवजा
धम्म ण कम्मं ण हु किं पि जाणे, झाणे रदो वंदण-हेदु-गम्मे। तित्थादु तित्थं रिसहं च देवं
गच्छेदि सो केवलदास-दासं ।। 3 ।। वह केवलदास न धर्म, न ही कर्म जानता है, फिर भी वह ध्यान में रत एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ की वन्दना करने के लिए ऋषभदेव/केसरया जी की ओर चल पड़ता है। मालती छन्द
गामे गामे सम्मं धम्म बोहीणं बम्हं णाणं बम्हं चारं बम्हीणं। वीरे मग्गे धीर भावे गच्छेदी
मंसं मज्जं चागावेंतो गच्छेदि।।5।। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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