________________
$$$$$$414141414141414
1 यह कालखंड भारतीय इतिहास का अंधकार युग है जिसका समुचित विवरण - उपलब्ध नहीं होता। इस दृष्टि से इन ग्रंथों में वर्णित गणित की प्ररूपणा - में भारतीय गणितशास्त्र के पांचवीं सदी से पूर्व के इतिहास के लिये प्रमुख सूचना स्रोत का काम करते हैं।
यह पाया गया है कि जैन संस्कृति संरक्षक संघ सोलापुर से प्रकाशित - धवला ग्रंथ के प्रथम, तृतीय (सर्वाधिक) चतुर्थ एवं दशवें खंड में षट्खंडागम
का मुख्य गणितीय भाग आ जाता है। कुछ गणितीय प्रकरण अन्य भागों में भी स्फुट रूप से पाये जाते हैं। प्रस्तुत लेख में कुछ प्रमुख प्रकरणों का समीक्षण किया जायेगा। सामान्यतः गणितशास्त्र के प्रारंभिक विभाग हैं-अंकगणित, अव्यक्त गणित (बीजगणित) और क्षेत्र गणित (ज्यामिति)। इन तीनों विभागों से संबंधित प्रकरण यहां दिये जा रहे हैं। अंकगणित : संख्यान और प्रमाण
स्थानांग (10/994) में गणित को संख्यान के नाम से उल्लिखित करते - हुए उसके 10 भेद बताये हैं-जिसमें अंकगणित के सभी रूपों-(परिकर्म,
मौलिक प्रक्रियायें, त्रैराशिक आदि), व्यवहार, राशि, वर्ग, धन, वर्गवर्ग, कलासवर्ण (भिन्न). यावत्-तावत् (गुणकार) के साथ क्षेत्रमिति (रज्जु और कल्प)
समाहित होते हैं। कुछ शोधक यावत्-तावत् को बीजगणित समीकरणों के TE रूप में लेते हैं। सूत्रकृत वृत्ति में एक नाम (पुद्गल वनाम कल्प) के परिवर्तन
के साथ ये नाम उपलब्ध होते हैं। ये संख्यान, श्री अकलंक स्वामी के अनुसार, गणना कोटि के लौकिक मानों में समाहित होने चाहिये। संभवतः अकलंक स्वामी को यह श्रेय दिया जाना चाहिये कि उन्होंने गणित के दो भेद किये-लौकिक और लोकोत्तर। इसके पूर्व के ग्रंथों में ये भेद दृष्टिगोचर नहीं होते।
स्थानांग और अनुयोग द्वार सूत्र के समान षट्खंडागम में भी इन भेदों का उल्लेख नहीं है। यह तथ्य इन ग्रंथों की अकलंक स्वामी से पूर्ववर्तिता प्रकट करता है। फिर भी यह भाव देखा गया है कि इन ग्रन्थों में प्रमाण के चार भेद किये गये हैं-द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं षट्खंडागम (एवं धवला टीका)
की तुलना में अनुयोग द्वार का एतद्विषयक विवरण पर्याप्त विकसित प्रतीत 4 होता है। इससे यह स्पष्ट है कि यह ग्रंथ षखंडागम से उत्तरवर्ती होना
चाहिये। सारणी 1 से स्पष्ट होता है कि षट्खंडागम में मुख्यतः लोकोत्तर । गणित है जैसा जैन ने भी सुझाया है। श्री अकलंक स्वामी ने, ऐसा प्रतीत 卐प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ
4545454545454545454545454545457
हाता
373
'
9595
5959595955