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3 आचार्य को प्राप्त हुआ।
आचार्य गुणधर का कसायपाहुड षट्खण्डागम से पूर्ववर्ती श्रुतग्रन्थ है क्योंकि उनके समय में महाकम्मपयडिपाहुड का पठन-पाठन अच्छी तरह प्रचलित था इसीलिए उन्होंने उक्त विषय से सम्बन्धित व्याख्या पर केवल पृच्छारूप गाथासूत्र ही कहे।
उपर्युक्त आधार पर यह स्पष्ट होता है कि आचार्य गुणधर वि. पूर्व प्रथम शताब्दी के हैं, आचार्य धरसेन के समकालीन नहीं क्योंकि षट्खण्डागम की भाषा कसायपाहुड की भाषा की अपेक्षा अर्वाचीन मानी गई है। सूत्रग्रन्थ की रचना
श्रुतधर आचार्य श्री गुणधर ने कसायपाहुडसुत्त की रचना की है। उन्होंने प्रारम्भ में ही ग्रन्थ निरूपण की प्रतिज्ञा के समय गाथाओं को "सुत्तगाथा" TE कहा है और वे पन्द्रह अर्थाधिकारों में विभक्त हैं। चूंकि यह ग्रन्थ सूत्र शैली में प्रणीत हैं, अतः कहा जा सकता है कि आचार्यप्रवर गुणधर ने अत्यन्त गहन, विस्तृत और जटिल विषय को अत्यन्त संक्षेप और बीजपद रूप में प्रस्तुत कर सूत्र-परम्परा का प्रारम्भ किया था।
समस्त आगम बारह अंगप्रविष्ट अर्थात् द्वादशांग रूप हैं। इसमें बारहवें दृष्टिवाद अंग के परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका ये पांच - भेद हैं। इसमें पूर्वगत के चौदह भेद हैं। इसके पांचवें ज्ञानप्रवाद नामक पूर्वा
के 12 वस्तुगत अवान्तर अधिकार हैं। प्रत्येक अधिकार के बीस-बीस पाहुड हैं। इनमें दसवां वस्तुगत अधिकार के अन्तर्गत आने वाले बीस पाहुडों में से तीसरे पाहुड का नाम पेज्जदोसपाहुड है, उसी से ही इस कसायपाहुडसुत्त नामक आगमग्रन्थ की उत्पत्ति हुई है। ऐसा इस ग्रन्थ की प्रथम गाथा से स्पष्ट होता है। कसायपाहुडसुत्त का ही सामान्य प्रचलित नाम "कषायप्राभृत" है। "जो अर्थपदों से स्फुट, सम्पृक्त या आभृत अर्थात् भरपूर हो, उसे प्राभृत कहते हैं।।" राग और द्वेष के प्रतिपादक कषाय सम्बन्धी अर्थपदों से भरपूर होने के कारण इस आगमग्रन्थ को "कषायप्राभृत" कहा जाता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ 180 गाथाओं एवं 15 अधिकारों में निबद्ध है जबकि इसमें कुल 233 गाथायें हैं। शेष 33 गाथायें कोई नागहस्ती आचार्य द्वारा TH रची हुई कहते हैं, तो कोई कहते हैं कि स्वयं आचार्य गुणधर ने प्रस्तुत ग्रन्थ 21 180 गाथा में निबद्ध करने के बाद उपसंहार या परिशिष्ट के रूप में ये गाथायें
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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