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51 गद्यचिन्तामणि का प्रारम्भ इष्टदेव की वन्दना और स्तुति से होता है।
कादम्बरी के प्रारम्भिक श्लोकों में सज्जनों की प्रशंसा और दुर्जनों की निन्दा मिलती है। गद्यचिन्तामणि में भी सज्जन और दुर्जनों के स्वभाव पर प्रकाश डाला गया है।
बाणभट्ट ने कादम्बरी के प्रारंभिक पद्यों में अपनी वंशपरम्परा का कथन F- किया है। वादीभसिंह ने भी गद्यचिन्तामणि में समन्तभद्रादि मुनियों की वन्दना
कर अपने गुरु का आदरपूर्वक उल्लेख किया है। वे अपने आपको मुनिपुङ्गव TE कहते हैं। मुनियों का कुल उनके आचार्य का संघ ही होता है।
कादम्बरी में राजा शूद्रक का वर्णन करने के पश्चात् उसकी विदिशा जा नामक राजधानी का वर्णन किया गया है। गद्यचिन्तामणि में हेमाङ्गद देश
का वर्णन करने के बाद उसकी राजधानी राजपुरी तथा राजा सत्यन्धर का वर्णन है।
कादम्बरी में विन्ध्याटवी वर्णन के प्रसङ्ग में कहा गया है कि जिस TE प्रकार कीसुत की कथा विपुल और अचल (नामक मित्रों) से युक्त है और
शश (नामक मंत्री) से युक्त है, उसी प्रकार जिसमें विशाल पर्वत हैं और जो शश (खरगोशों) से युक्त हैं।
गद्यचिन्तामणि में कहा गया है कि जिस प्रकार कीसुत के मत का प्रदर्शन चोर के हृदय को सन्तुष्ट करता है......उसी प्रकार मदन के उक्त कथन ने काष्ठाङ्गार के हृदय को अत्यन्त सन्तुष्ट किया कादम्बरी के टीकाकार भानुचन्द्र गणि ने कर्णीसुत को चौर्यशास्त्र का प्रवर्तक बतलाया है-“कर्णीसुतः करटकः स्तेयशास्त्र प्रवर्तकः।।" -कादम्बरी-टीका पृ. 70
कादम्बरी गोदावरी नदी को अगस्त्य के द्वारा पिए गए सागर के मार्ग का अनुसरण करने वाली। बतलाया गया है।
गद्यचिन्तामणि में फैलाए गए मणियों के समूह से युक्त गन्धोत्कट के भवन की उपमा ऐसे रत्नाकर से की गई है, जिसका सारा पानी अगस्त्य ने पी लिया था।
कादम्बरी में गुरु शुकनास राजकुमार चन्द्रापीड को राजनीति का उपदेश देते हैं। गद्यचिन्तामणि में गुरु आर्यनन्दि राजकुमार जीवन्धर को राजनीति का उपदेश देते हैं। कादम्बरी शुकनासोपदेश में यौवन से उत्पन्न अन्धकार की निन्दा की है। गद्यचिन्तामणि में भी यौवन से उत्पन्न मोहरूपी
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-प्रन्थ
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