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15454545454545454545454545454545 11 ग्रन्थ अपूर्ण है। प्राप्त भाग अनुष्टुप छन्द में है। अधिकारों के अन्त । LF में पुष्पिकावाक्य से इनके कर्ता वादीमसिंह निश्चित होते हैं।
गचिन्तामणि-भगवान् महावीर के समकालीन राजा जीवन्धर के चरित्र को आधार बनाकर इस गद्यात्मक कृति की रचना की गई है। इसे ग्यारह लम्भों में विभक्त किया गया है। इसकी कथावस्तु पौराणिक है। पौराणिक कथानक को काव्यरचना का आधार बनाया गया है। मूल कथावस्तु छोटी है, किन्तु कवि की वर्णनाशक्ति के कारण यह विस्तार को प्राप्त हुई है। कथा में सरलता - है, जटिलता नहीं है। कथानक का तारतम्य निरन्तर बना रहता है। कहानी
का बहुत बड़ा गुण उत्सुकता और जिज्ञासा को जागृत करके उसे अन्त तक बनाए रखना है। इस दृष्टि से गद्यचिन्तामणि की कथा बहुत सफल है। राजा सत्यन्धर की रानी तीन स्वप्न देखती है। वह उन स्वप्नों का फल राजा से पूछती है। राजा बताते हैं कि तुम्हारे पुत्र होगा, उसकी आठ स्त्रियाँ होंगी, पर तीसरे स्वप्न अशोकवृक्ष के गिरने का फल राजा ने नहीं बतलाया। पाठकों की जिज्ञासा यहीं से प्रारम्भ होती है और आगे तक किसी न किसी रूप में जिज्ञासा चलती रहती है। जीवन्धर के पूर्वभव को छोड़कर सब जगह मुख्य कथा ही चलती है। कथा के प्रधान नायक जीवन्धर हैं, किन्तु नायिकायें अनेक हैं। काष्ठाङ्गार प्रतिनायक है। कथा में वर्णन लम्बे लम्बे नहीं हैं। कवि प्रवाहपूर्ण वर्णन कर आगे बढ़ता जाता है, इससे पाठक को ऊब पैदा नहीं होती है। अलौकिक प्रसङ्ग उतने ही हैं, जो कथानक को गति प्रदान करते हैं। इन प्रसङ्गों से पुनर्जन्म के सिद्धान्त को बल मिलता है। कहीं-कहीं कथानक रूढ़ियों का भी प्रयोग हुआ है। पात्र के दोषों को भी वादीभसिंह ने छिपाया नहीं है। उदाहरणार्थ सत्यन्धर का अत्यधिक विषयासक्त होना,
मंत्रियों की सलाह पर ध्यान न देना और मन्त्री काष्ठाङ्गार पर अत्यधिक TE विश्वास करना । जीवन्धर प्रारम्भ से नायकोचित सभी गुणों से युक्त है। वह
परिपुष्ट, बलवान और सुन्दर है। सभी विद्याओं का उन्होंने विधिवत अध्ययन 45किया है वह अत्यन्त विनीत और नम्र है। गुरु के सामने उसकी नम्रता दर्शनीय
है। उसका पराक्रम अद्वितीय है। औदार्य और सहानुभूति उसके अन्दर पर्याप्त
मात्रा में हैं। वह मरते हुए कुत्ते को भी णमोकार मंत्र सुनाकर उसकी सद्गति TF की प्राप्ति में सहायक बनता है। वह सुन्दर है। रूपवती कन्यायें उसके प्रति
आकृष्ट होती है। उसमें धीरता का गुण है। जिन्हें वह चाहता है, उन कन्याओं भी के सामने तत्काल प्रणय निवेदन नहीं करता है। एक बार किसी के प्रति 51 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
413 LETELETELELELETEELETELEनानाना
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