________________
45146145454545454545454545454545457 卐 प्रेम हो जाने पर वह किसी प्रकार कम नहीं होता। प्रेम के आगे वह कर्तव्य 卐 - नहीं छोड़ता है।
वादीभसिंह भारतीय प्रेम के आदर्श के अनुसार काम विकार का आरम्भ पहले स्त्रियों में दिखलाते हैं, इसके बाद वह पुरुष में उत्पन्न होता हैं उनका प्रेम लौकिक है, किसी प्रकार का अलौकिक प्रेम नहीं। क्षत्रचूडामणि-वादीभसिंह की काव्यप्रतिभा जीवन्धरचरित्र के प्रति इतनी आकृष्ट थी कि उसे गद्यचिन्तामणि जैसी प्रौढ़ कृति से भी सन्तोष नहीं हुआ है। उस प्रतिभा ने अपना प्रवाह गद्य की ओर बढ़ाया और जीवन्धर के ही चरित्र को आधार बनाकर पद्यमय काव्यरचना की तथा क्षत्रचूडामणि जैसे
महाकाव्य की रचना की। यह महाकाव्य ग्यारह लम्भों में विभक्त है। प्रत्येक TE लम्ब की कथावस्तु मूलरूप में गद्यचिन्तामणि जैसी है, किन्तु क्षत्रचूडामणि TE
अपनी कुछ स्वतन्त्र विशेषताओं को लिये हुए है। प्रत्येक पद्य के पूर्वार्द्ध में कवि कथा का वर्णन कर उत्तरार्द्ध में अर्थान्तरन्यास द्वारा नीति का वर्णन करता है। पद्य में अनुष्टुप छन्द का प्रयोग किया गया है। इस दृष्टि से यह विश्व TE का अद्वितीय काव्य है। किसी सत्य कथानक के आधार पर इस प्रकार नीतिमय महाकाव्य का सृजन कवि की अनूठी प्रतिभा, कल्पनाशक्ति और भावप्रणता का अनौखा उदाहरण है। क्षत्रचूडामणि नीति का भण्डार है। इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सम्बन्धी व्यावहारिक, अर्थगाम्भीर्य से युक्त सुन्दर सूक्तियाँ हैं। ये सूक्तियाँ बहुत छोटी छोटी हैं, किन्तु इनमें जीवन, जगत, लोक-परलोक, यथार्थ और आदर्श, प्रेम और द्वन्द्व आदि के उपदेश भरे पड़े हैं। नीतिवाक्य रूपी रत्नों का यह आकर है। इसमें अवगाहन कर व्यक्ति अनगिनत रत्न पा सकता है। वह अपने इस जीवन को पवित्र बनाकर परलोक को भी पवित्र बना सकता है। यह अकेला काव्य कवि के व्यक्तित्व और कर्तृत्व को अमर -
रखने में समर्थ है। 4: वादीभसिंह और अन्य कवि
वादीमसिंह और बाणभट्ट-गद्यचिन्तामणि की शैली और रूपसज्जा को देखने
पर ऐसा लगता है कि वे बाण से प्रभावित हैं। यद्यपि दोनों की उदभावनायें L: मौलिक हैं, तथापि कथा प्रसङ्गों के संविधान में, विभिन्न प्रकार के वर्णनों 15 में एक विचित्र प्रकार का साम्य दोनों में दिखाई पड़ता है।
कादम्बरी के प्रारंभ में बाण ने इष्टदेव की आराधना की है। 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
414
5555555559595959555555