________________
4554555555454545454545454545
श्रुतधराचार्य श्री गुणधर-जीवन व
साहित्य पर एक दृष्टि
श्रतधराचार्य श्री गुणधर श्रुतधराचार्य से तात्पर्य उन आचार्यों से है जो केवली और श्रुतकेवलियों की परम्परा को प्राप्त कर अंग या पूर्वो के एकदेशज्ञाता हों। दिगम्बर आम्नाय के अनुसार आचार्य गुणधर का स्थान श्री धरसेनाचार्य की तरह ही न केवल अंगज्ञान के अंशधारियों में है बल्कि श्रुतधराचार्यों की परम्परा में आप सर्वप्रथम आचार्य हैं। किन्तु भगवान वीर के निर्वाण के बाद प्राप्त श्रुतधराचार्यों की परम्परा में आपका नाम दृष्टिगोचर नहीं होता। कोश' में दो परम्पराओं का उल्लेख है-प्रथम, जिसके अनुसार 62 वर्ष तक केवली परम्परा, सौ वर्ष तक पूर्ण श्रुतकेवली परम्परा फिर 183 वर्ष तक ग्यारह अंग, दस पूर्वधारी, 22 वर्ष तक ग्यारह अंगधारी, पांच आचार्यों की परम्परा, फिर 118 वर्ष तक आचारांगधारियों की परम्परा-इस प्रकार लोहाचार्य तक 683 वर्ष तक यह परम्परा विद्यमान रही। जबकि दूसरी परम्परा के अनुसार लोहाचार्य तक केवल 565 वर्ष ही हुए तथा शेष 118 वर्षों में अन्य नव आचार्यों का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार आचार्य भूतबलि तक 683 वर्ष पूर्ण होते हैं। जो कुछ भी हो, इन दोनों परम्पराओं में आचार्य गुणधर का कहीं नाम नहीं है। जबकि श्रुत प्रतिष्ठापक आचार्यों में आचार्य गुणधर और आचार्य धरसेन प्रमुख और ख्याति प्राप्त हैं। इन दोनों आचार्यों में आचार्य गुणधर अधिक ज्ञानी प्रमाणित सिद्ध होते हैं। यथा :
1. आचार्य गुणधर को द्वादशांग के पंचम पूर्वगत पेज्जदोसपाहुड तथा महाकम्मपयडिपाहुड श्रुत का ज्ञान प्राप्त था, जबकि आचार्य धरसेन को पूर्ववत कम्मपयडिपाहुड श्रुत का ज्ञान प्राप्त था।
2. आचार्य धरसेन ने किसी श्रृत/आगम की रचना नहीं की जबकि आचार्य गुणधर ने पेज्जदोसपाहुड अपरनाम कसायपाहुडसुत्त नामक श्रुत की रचना की है। इस दृष्टि से आचार्य गुणधर प्रथम श्रुतकार भी माने जाते हैं।
3. आचार्य गुणधर पूर्वविदों की परम्परा में शामिल थे किन्तु आचार्य : 1 धरसेन पूर्वविद होते हुए भी पूर्वविदों की परम्परा में नहीं थे। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
386F
45454545454545454545454545454545
-
-