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व्यापक
लोक के लिये सोलह राशिगत अल्पबहुत्व निरूपत किया है। (सारणी 2 ) । इन विद्वानों की विशेषता यह है कि इनमें परिमेय राशियां प्रायः नहीं हैं, अपरिमेय राशियां ही अधिक हैं। इसलिये इनका व्यावहारिक मान देना असंभव सा है। साथ ही, 'विशेष अधिक' पद के अर्थ भी प्रायः अपरिमेय राशियों में ही हैं। सारणी 2 से यह स्पष्ट है कि वर्तमान काल (एक समय) से अतीत काल पर्याप्त अधिक है और अनागत काल तो अंतहीन एवं अतीत से बहुगुणी अनंत है। संभवत अल्पबहुत्व लोकोत्तर श्रेणी की कोटि की राशि है। सारणी 2 : धवला में सोलह राशिगत अल्पबहुत्व
1. वर्तमान काल
2. अभव्य जीव
3. सिद्धकाल
4. सिद्ध
फ्र
5. असिद्ध
6. अतीत काल
7. भव्य मिथ्यादृष्टि 8. भव्यजीव 9. सामान्य मिथ्यादृष्टि 10. संसारी जीव
11. संपूर्ण जीव
12. पुद्गल द्रव्य
13. अनागत काल
14. संपूर्ण काल
15. अलोकाकाश 16. संपूर्ण आकाश
अल्पतम
अनन्त गुणे अनंतगुणा
संख्यात गुणे
असंख्यात गुणे
विशेष अधिक
अनंतगुणे
विशेष-अधिक
विशेषाधिक
विशेषाधिक
विशेषाधिक अनंत गुणे अनंतगुणा विशेषाधिक
अनंत गुणा विशेषाधिक
उपसंहार
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वीरसेन स्वामी ने धवला टीका में न केवल तत्कालीन प्रचलित गणित विद्याओं का प्रयोग किया है, अपितु अनेक नवीन स्थापनायें एवं विधायें भी प्रस्तुत की हैं। इनके तुलनात्मक अध्ययन से जैन ने यह मत व्यक्त किया है कि सम-सामयिक गणित-विद्या के विकास 5 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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