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95959555555555555555555555555 Hi बतलाया गया है। इसमें कषायों के परिवर्तन-वार, कषायोपयोग अल्पबहुत्व, म कषायोपयुक्त-भव अल्पबहुत्व, कषायोपयोग वर्गणा आदि का वर्णन है। "
चतुःस्थान अर्थाधिकार में प्रत्येक कषाय के चार-चार स्थानों का वर्णन :है। काल की अपेक्षा क्रोध पर्वत, पृथ्वी, बालू और पानी में खींची गई रेखा 51 के समान काल तक ठहरता है। भावों की कठोरता के सदृश मानकषाय शैल, अस्थि, दारू और लता के सदृश पाया जाता है । कुटिल भावों की तीव्रता-मन्दता - की अपेक्षा माया कषाय बाँस की जड़, मेढे के सींग, गाय के मूत्र और दातुन के समान कम-कम कुटिलता लिए हुए होता है। तथा अनुभाग की हीनाधिकता की अपेक्षा लोभ कषाय भी कृमिराग सदृश अर्थात् अत्यन्त पक्के । और किसी भी प्रकार न छूटने वाले रंग से रंगे वस्त्र के समान, अक्षमल अर्थात चक्का पर लगाये गये ओंगन के समान, धूलि के लेप के समान और कच्चे TE रंग से रंगे गये वस्त्र के समान चतःस्थानीय होता है। धातिया कर्म लता, दारू,
अस्थि और पर्वत के समान अधिक-अधिक कठोर होता हैं इनका प्रदेश क्रमशः TE अनन्तगुणित हीन-हीन है और अनुभाग क्रमशः अनन्तगुणित अधिक-अधिक है।
लता समान अनुभाग देशघाती और अस्थि व शैल समान अनुभाग सर्वघाती ही होता है किन्तु दारू समान अनुभाग में उपरित अनन्त बहुभाग तो सर्वघाती + और अधस्तन अनन्तवां भाग देशघाती होता है।
व्यंजन अर्थाधिकार में क्रोधादि चारों कषायों के पर्यायवाची नाम दिये। गये हैं। कोप, रोष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, वृद्धि, झंझा, द्वेष और विषाद ये
क्रोध के, मान मद, दर्प, स्तम्भ, उत्कर्ष, प्रकर्ष, समुत्कर्ष, आत्मोत्कर्ष, परिभव Pा और उसिक्त ये मान के; सातियोग, निकृति, वंचना, अनृजुता, ग्रहण, जा
मनोज्ञमार्गण, कल्क, कुहक, गूहन और छन्न ये माया है तथा काम, राग, निदान, छन्द, स्वत, प्रेय, दोष, स्नेह, अनुराग, आशा, इच्छा, मूर्छा, गृद्धि, साशता, शाश्वत, प्रार्थना, लालसा, अविरति, तृष्णा, विद्या और जिह्वा ये लोभ कषाय के एकार्थक नाम हैं।
उपर्युक्त सभी अधिकारों का अध्ययन ज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम तथा : 31 उपयोग की स्थिरता के लिए करना चाहिये क्योंकि स्वाध्याय में प्रतिसमय। LE असंख्यातगुणित रूप से कर्मों की निर्जरा होती है। किन्तु आत्महित के लिए .
सम्यक्त्व की प्राप्ति आवश्यक है जिसके प्राप्त होने पर संसार-छेद की सीमा - तय हो जाती है। सम्यक्त्व अर्थाधिकार में दर्शनमोह के उपशम की प्रक्रिया । प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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