________________
45945454545454545454545454597995455
गोम्मटसार षट्खण्डागम की परम्परा का ग्रन्थ है यह ग्रन्थ दो भागों 卐
में विभक्त है (1) जीवकाण्ड, (2) कर्मकाण्ड। जीवकाण्ड में 734 गाथाओं में बीस-प्ररूपण के द्वारा जीवतत्त्व का वर्णन किया गया है। कर्मकाण्ड में 962 गाथाओं के माध्यम से कर्मसिद्धान्त का सूक्ष्मरीत्या वर्णन किया गया
यह ग्रन्थ इतना गंभीर और क्लिष्ट है कि इसकी निम्नलिखित टीका और व्याख्या होने पर भी यह सागर के समान गंभीर है। :
(1) श्रीज्ञानभूषण मुनि के शिष्य श्रीनेमिचन्द्र सूरिकृत "जीवतत्त्व प्रदीपिका" नामक संस्कृतटीका (सम्पूर्ण)।
(2) श्री अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती कृत 'मन्दप्रबोधिनी' नामक संस्कृतटीका (अपूर्ण)।
(3) श्री अभयचन्द्राचार्य के शिष्य केशववर्णीकृत संस्कृतटीका। (4) श्रीचामुण्डराय कृत कर्नाटक वृति (पंजिका)। (5) श्रीकेशववर्णी कृत कन्नड़वृत्ति टीका।
(6) पण्डितप्रवर टोडरमल्ल कृत सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका' नामक हिन्दी | टीका।
(7) पं. खूबचन्द्र शास्त्रीकृत बालबोधिनी' नामक संक्षिप्त हिन्दी टीका । (8) पं. मनोहर लाल शास्त्री कृत संक्षिप्त हिन्दी टीका।
(७) आर्यिका आदिमतीकृत सिद्धान्त ज्ञान दीपिका' नामक हिन्दी की । विस्तृत टीका।
(10) पं. कैलाशचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री कृत, केशववर्णीकृत संस्कृत टीका के आधार पर नवीन हिन्दी विस्तृत टीका।
(11) ब्र. दौलतराम शास्त्री कृत हिन्दी पद्यानुवाद (अप्रकाशित) (12) बैरिस्टर जुगमन्दिरदास कृत अंग्रेजी टीका। (13) स्व. नेमिचन्द्रजी वकील उस्मानावाद कृत मराठी टीका।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
545454545454545454545
402-11 टाटा