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भनिरीक्षण करते थे। जीवकाण्ड में आपने जीवों की जातियों का जो वर्गीकरण, - किया है। वह जीवसमास के प्रकरण से सूक्ष्म एवं व्यापक प्रतीत होता है।
उस जीव जाति विज्ञान से तीन लोक के समस्त जीवों का संग्रह हो जाता है, कोई भी जीव अवशिष्ट नहीं रहता। जीवकाण्ड की गाथा नं. 73 से 80
तक मौलिकरूप से जो जीवों का वर्गीकरण किया गया है वह अंकसंदृष्टि -1 से सहज ही बुद्धिगत हो जाता है दृष्टिपात करें :4 1. पृथिवी, 2. जल, 3. अग्नि, 4. वायु, 5. नित्यनिगोद, 6. इतरनिगोद।
6x2 बादर-सूक्ष्म 12x2 सप्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित 14x5 द्वीन्द्रिय, त्री. चतुरि. असं. पंचे, संज्ञी पंचे. 19x9 सामान्य की अपेक्षा 19 मूलभेद 19x2 पर्याप्त-अपर्याप्त
38 स्थूल भेद 419x3 पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त TE 57-6 (जलचर 2, थलचर-2, नभचर-2. संज्ञी असंज्ञी के भेद से)
151+30 = 12 गर्भजतिथंच, 18 सम्मूर्छन के भेद। 4581+4 भोगभूमिजतिर्यंचभेद (थलचर 2, नभचर 2)
- 85+3 आर्य मनुष्य भेद 51 88+2 म्लेच्छ मनुष्य भेद 1590+8 = भोगभूमिजनर 21 कुभोगभूमिजनर 21 देव 2। नारकी 2
98 जीवसमास कुल. जीव के विशेष भेद (जीनतत्त्वप्रबोधिनी टीका के अनुसार) 14+शुद्धपृथिवी आदिभेद 10+सप्रतिष्ठित तृण आदि 3 द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय 27x3 पर्याप्त, निर्वत्यपर्याप्त, लब्ध्यपर्याप्त। 81+1
पंचेन्द्रिय गर्भज तिर्यंच - 93+18 सम्मूछेनजीव भेद 31 111+12 उत्तम-मध्यम-जघन्यभोगभूमिजभेद ।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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