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- लधिसार एवं क्षपणासार
नेमिचन्द्राचार्य की तृतीय महत्त्वपूर्ण रचना लब्धिसार के नाम से प्रसिद्ध LE है इस ग्रन्थ में 649 प्राकृत गाथाओं के माध्यम से सम्यग्दर्शन और 51 सम्यकचारित्र की लब्धि (प्राप्ति) का विस्तृत विवेचन किया गया है, अतः इस
ग्रन्थ का नाम सार्थक है। लब्धि पांच प्रकार की होती हैं-(1) क्षयोपशमलब्धि, (2) विशुद्धि लब्धि, (3) देशनालब्धि, (4) प्रायोग्य-लब्धि, (5) करणलब्धि।। क्षपणासार
यह ग्रन्थ लब्धिसार का ही एक विभाग उत्तरार्ध के रूप में प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में 653 गाथाओं के माध्यम से आठ कर्मों के क्षपण (क्षय) करने की विधि का क्रमशः विस्तृत वर्णन किया गया है। इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि श्री माधवचन्द्र विद्य ने बाहुकी मंत्री की प्रार्थना के निमित्त से इस ग्रन्थ पर संस्कृत टीका लिख दी है।
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का शिष्यत्व चामुण्डराय ने ग्रहण किया था। यह चामुण्डराय, गंगवंशी राजा राजमल्ल का प्रधान मंत्री और - सेनापति था। उसने अनेक समरों में विजय का बिगुल बजाया। विजय के
उपलक्ष्य में अनेक उपाधियां प्राप्त कर यश को दिगन्तव्यापी किया। प्रथम उपाधि-वीरमार्तण्ड, द्वितीय-सम्यक्त्वरत्ननिलय, तृतीय-गुणरत्नभूषण,
चतुर्थ-देवराज, पंचम-सत्ययुधिष्ठिर आदि । चामुण्डराय ने श्रवणवेलगोला-(मैसूर) + में शोभित विन्ध्यगिरि पर बाहुबलि स्वामी की 57 फीट उन्नत अतिशय मनोज्ञ
प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी जो आज भी नवीन आश्चर्य के साथ भारत का मस्तक उन्नत कर रही है। श्रीबाहबलि ने एक वर्ष तक खडगासन दिगम्बर मद्रा में मौनधारण कर आत्मध्यान किया। उनकी स्मृति में उनके श्रेष्ठ भ्राता भरत - चक्री ने उत्तर भारत में एक प्रतिमा स्थापित कराई थी। वह कुक्कुटसों से व्याप्त हो जाने के कारण कुक्कुटजिन के नाम से प्रसिद्ध हुई। वह वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। उत्तरभारत की इस मूर्ति से भिन्नता दर्शाने के लिये चामुण्डराय के द्वारा दक्षिण भारत में स्थापित वह मूर्ति दक्षिणकुक्कुट जिन' के नाम से प्रसिद्ध हई।
-तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भा. 2. पृ. 420 नेमिचन्द्राचार्य का जीव विज्ञान F1 श्री नेमिचन्द्राचार्य अपने अन्तर्विज्ञान से किसी तत्त्व का सूक्ष्मरीत्या प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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