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959555555555555555555
(घटाना या निराकरण)। इनमें से गणित में अंतिम पांच विधियों का उपयोग किया गया है। वस्तुतः कोई भी माप हो, संख्या की इकाइयों के माध्यम से ही व्यक्त किया जाता है। संभवतः वीरसेन स्वामी के अतिरिक्त इन विधियों का निरूपण समन्वित रूप से कहीं भी नहीं मिलता। इनके निरूपण में धूवराशि पद का भी उपयोग किया गया है। इन सभी विधियों से विभिन्न धाराओं के माध्यम से मिथ्यादष्टि जीवराशि का संगत परिकलन किया गया है।
इन विधियों में खंडित, भाजित, विरलन और अपहरण सुगम हैं। अतः उनका विशेष विवरण न देकर विकल्प-विधि के भेद-प्रभेद बताये हैं। विकल्प के दो भेद हैं-अधस्तन और उपरिम । अधस्तन विकल्प द्विरूपधारा के लिये संभव नहीं है, पर यह घन, घनाघन आदि धाराओं के लिये संभव है। इनमें द्विगणाधिकरण विधि का प्रयोग होता है। उदाहरणार्थ, यदि संपूर्ण जीवराशि
को 16 माना जाये और ध्रुवराशि 256/13 मानी जावे तो : 4 मिथ्यादृष्टि जीव राशि = 16 x 256/13 = 4090 : 4096 x 1 = 13
13
1
4096
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उपरिम विकल्प के तीन भेद बताये गये हैं : गृहीत, गृहीतगृहीत और गृहीत गुणकार। इनके अनेक प्रकार से दिये गये परिकलनों में सरलतम निम्न हैं 4
65536..
1. गृहीत - जीवराशि वर्ग = 256 = 13 (प्रथम परिकलन)
धुवराशि 256/13 2. गृहीत-गृहीत =
जीवराशि का इतिहास वर्ग " इच्छित वर्ग/मिथ्यादृष्टि जीवराशि 65536*
-x13-13 इच्छित वर्ग 3. गृहीत गुणकार =
655362 इच्छित वर्ग: - 655365 - 13
मिथ्यादृष्टि जीवराशि - इसी प्रकार नारक मिथ्यादृष्टि जीवराशि हेतु एक अन्य उदाहरण से विकल्प
हेतु निम्न सूत्र प्राप्त होता है : ।
जहां n असंख्येय राशि है, T जीवों का समुच्चय है तथा g मिथ्यादृष्टि जीव 141414141441451475574474574749745475
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ