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454545454545454545454545454545 म इनके संबंध को पाइ द्वारा व्यक्त किया जाता है, जहां + pl=x = 3; या 10 = 3.16 d)
355 ___c= 3D+ 10 DD 20D= 3.14 (i) । त्रिलोक प्रज्ञप्ति आदि ग्रंथों में इसके प्रायः दो मान दिये गये हैं, 3 या Vio -धवलाकार ने अनेक स्थानों पर 240 के मान का उपयोग किया है, पर उन्होंने एक उद्धरण देते हुए पाइ का सूक्ष्मतर मान भी (11) के रूप में व्यक्त किया है। यह सम-सामयिक 3.16 के बदले आधुनिक मान 3.14 के अधिक निकट है। आजकल यह मान 22 दशमलव अंकों तक उपलब्ध है। वीरसेन स्वामी ने अनेक प्रकरणों में इस मान का उपयोग किया है। 2. शंकु-छिन्त्रक का आयतन : धवला के चौथे खंड में लोक के आकार की व्याख्या के संबंध में वीरसेन ने शंकु-छिन्त्रक (शंकवाकर लोक का एक खंड) के आयतन को ज्ञात करने के लिये उसे असंख्यबार सम-खंड विदारित कर प्रत्येक खंड के आयतन प्राप्त करने की अपूर्व प्रक्रिया अपनाई। इन विभिन्न
आयतनों के गुणश्रेणीगत संकलन से जैन ने शंकु-छिन्त्रक का निम्न आयतन - पाया है:
v=3D 1/3 Ih (a + b + 2ab) इस विषय पर सिंह और जैन ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। जैन का कथन है कि वीरसेन स्वामी अनंत विदारण-प्रक्रिया अपनाने के बदले अन्य सरल प्रक्रिया भी इस हेतु अपना सकते थे।
श्री वीरसेन स्वामी ने लोक को परिवेशित करने वाले विभिन्न बलयों का आयतन भी ज्ञात किया है। इसमें वृत्तीय क्षेत्र ज्यामिति समाहित हो जाती TE है। त्रिलोक प्रज्ञप्ति इस विषय में अधिक विवरण देती है।
जैन ने एक प्रकरण में एक बीजगणितीय समीकरण को क्षेत्रमितीय रूप में प्रस्तुत करने का भी उदाहरण दिया है। भावप्रमाण के माध्यम से राशियों का परिकलन
वीरसेन स्वामी के भावप्रमाण के विवरण में पूर्वोक्त मृत्यु प्रक्रियाओं के LF अतिरिक्त आठ अन्य विधियां बताई हैं जिनसे अनेक जीवराशियों का परिकलन F- किया जा सकता है। इनके नाम है-प्रमाण (माप), कारण, निरुक्ति (व्याख्या), + विकल्प (पृथक्करण), खंडित भित्रकरण). भाजित, विरलन और अपहरण
ताप्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर गणी स्मृति-ग्रन्थ
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