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F1 लघुगुणक या लोगोरिथ्म (Logorytim) का विवरण - लघुगुणक की प्रक्रिया भी वृहत्तर संख्याओं को सरल रूप में व्यक्त
करने और मूलभूत प्रक्रियाओं को ऋण-धन के रूप में संपन्न करने की एक सरल पद्धति है। धवला में अनेक स्थानों पर वर्तमान में प्रचलित लोगोरिथ्य विधि का उपयोग किया गया है। लेकिन उसकी आधार संख्या Lic..या in नहीं है। इसके विपरीति में, यहां इसे अर्धच्छेद, त्रिकछेद, चतुर्थ छेद के नाम से व्यक्त किया गया है जहां आधार संख्या क्रमशः 2.3 44 है। इसके साथ ही वर्गशलाका के रूप में LigzLie.का भी उपयोग पाया जाता है। इनके विषय में सिंह ने अनेक लेख लिखे हैं। इन विभिन्न प्रकार के छेदों के सामान्य सत्र निम्न हैं :
lig zem=m lig 2 Liga = m lig 33 = m
lig440 ==m सिंह ने बताया है कि समसामयिक भारतीय गणित में इस प्रकार के लघुगणक नहीं पाये जाते हैं। यह जैन गणित की ही विशेषता है। फिर भी उन्होंने इस तथ्य को प्रकट किया है कि इस विधि का अधिक प्रचलन इसलिये नहीं हो पाया है कि जैनाचार्यों ने वर्तमान समय के समान लोगेरिथ्म सारणियां नहीं बनाई, इनसे संख्यात्मक परिकलनों में बड़ी सरलता हो जाती।
धवला में वर्णित अनेक प्रकरणों के आधार पर छेदों के संबंध में वर्तमान के निम्न सूत्र उद्धघटित होते हैं : 1. Lig . = liga - logl = Log (ar) a = a log at 2. Lig2 ab = loga + logl =
वीरसेन के परिकालनो के अनुसार,
TE
Lig, lig. x]' < {x}}
log. x = x lig. x]P TE जहां 7 वर्गण-संवर्गण के लिये है। इस आधार पर वर्गण-संवर्गण को भी ना लोगारिथ्म रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ
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