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- रूप में बता
संख्या से आरंभ करते हैं। उदाहरणार्थ, उपरोक्त संख्या को ही इस विधि से सात करोड निन्यानवें-लाख निन्यानवे हजार नौ सौ अठानवे के रूप में व्यक्त किया जायेगा। यह लाख की इकाई को शत-सहस्त्र के रूप में व्यक्त किया गया है।
धवला में अधिकांश संख्या-संकेतन इसी विधि से किया गया है। एक समय ऐसा भी रहा है जब अंकों को वर्गों से संकेतित करते थे और संख्या वर्गों के रूप में व्यक्त की जाती थी। इस प्रक्रम के स्फुट प्रयोग धवला में भी देखने को मिलते हैं।
संख्याओं के संकेतन में शून्य का महत्त्व स्पष्ट है। जैन शास्त्रों में शुन्य का अनेक अर्थों में प्रयोग हुआ है। पं. टोडरमल ने इसे ऋण के संकेत के रूप में बताया है। वीरसेन ने इसे इन्द्रिय-आधारित जीवों को सचित करने तथा अन्तराल या रिक्तियों को पूर्ण करने का सूचक बताया है। लेकिन गणित में इसका महत्वपूर्ण उपयोग संख्याओं के स्थान-मूल्यों के लिये किया जाता
है। उदाहरणार्थ 65000 को लिखने के लिये 653 का संकेत प्रयुक्त होता - है। जिसका अर्थ है 65 के बाद तीन शून्य। वीरसेन स्वामी ने कोड़ाकोड़ी ।
आदि की संख्याओं के निरूपण में इसका उपयोग किया है। त्रिलोक प्रज्ञप्ति E में भी शून्य का इसी रूप में उपयोग है। इस प्रकार, स्थानार्हापद्धति में शून्य
के उपयोग का महत्व स्पष्ट है। अंकगणित की मूलभूत प्रक्रियायें और भिन्न-भिन्न संख्यायें
धवला में स्थान-स्थान पर गणित की सामान्य प्रक्रियाओं का उपयोग किया गया है। इनमें परिकर्म-अष्टक (जोड़, बाकी, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल, Hघन, घनमूल) समाहित हैं। पूर्वप्रयुक्त परिकर्म पद के अर्थ से यह अर्थ भिन्न-सा + है। इन प्रक्रियाओं का परिज्ञान धवलाकाल से पूर्व के ग्रन्थों-त्रिलोकप्रज्ञप्ति,
अंगग्रंथ आदि में भी पाया गया है। यह अवश्य है कि प्रारंभ में इन क्रियाओं
के संकेत अक्षरात्मक होते थे। वर्तमान में इन्हें अनक्षरात्मक प्रतीकों से व्यक्त र किया जाता है।
ये प्रक्रियायें पूर्णाक की संख्याओं के साथ भिन्नांकी संख्याओं के लिये भी प्रयुक्त हुई हैं। सिंह ने इस विषय में धवलागत अनेक सूत्र व्यक्त किये हैं जिनमें दो निम्न हैं :
:
(r/q1)
14 qr
r
१
4tc
(r/q+1)
12/r
1
जैन ने इस संबंध में 11 समीकरण दिये हैं।
| प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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