________________
19595555555555555555555
आचार्य श्री सूर्यसागर जी : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
आचार्य श्री 108 सूर्यसागर जी महाराज एक निःस्पृह, वीतरागी और शांतिप्रिय साधु थे। अपने जीवन काल में समाज में व्याप्त अनेक स्थानों के ! आपसी मतभेद, फूट, मनमुटाव और परस्पर के कलह- झगड़ों को अपने सदुपदेशों द्वारा मिटाने में वे सिद्धहस्त थे। उन्होंने अनेक स्थानों की समाजों के वर्षों के आपसी झगड़े मिटाकर समाज में एकता स्थापित की, सामाजिक LE संगठन को मजबूत बनाया और कषायों को मिटा कर शान्ति स्थापित की। वे परम तपस्वी थे। उन्होंने आगमानुसार अपने मुनि जीवन को बनाया। उनकी । कथनी करनी में अन्तर नहीं था। वे आहार के लिये एक बार शहर में जाते। 4. सदपदेश देकर वापस शहर से बाहर चले जाते। वे सात्त्विक वृत्ति के साधु थे। जयपुर में उनका वर्षायोग सन् 1936 में प्रथम बार हुआ।
आचार्य श्री का जन्म कार्तिक शुक्ला नवमी विक्रम संवत् 1940 में ग्वालियर के प्रेमसर नामक ग्राम में पोरवाल जाति के यसलहा परिवार में हुआ था। गृहस्थावस्था में आपका नाम श्री हजारीमल था। आपके पिता का नाम श्री हीरालाल जी, माता का नाम गैंदाबाई था। श्री हीरालाल जी के सहोदर भाई बलदेव जी के सन्तान न होने से चरित्र नायक श्री हजारीमल जी उनके दत्तक हो गये और उनके साथ बाल्यावस्था में ही झालरापाटन आ गये। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा झालरापाटन में ही हुई। अधिक पढ़ नहीं सके। शिवपुर जिले के मेवाडा ग्राम में ओंकार मल जी पोरवाल की सपत्री मोतां बाई के साथ आपका विवाह हो गया और इन्दौर आकर राव राजा सर सेठ हुकमचंद जी के यहां और उसके बाद सेठ कल्याणमल जी के यहां सर्विस की। सर्विस छोड़कर कपड़े का स्वतंत्र व्यवसाय किया कपड़े की दलाली भी करते रहे। __आपकी बचपन से धार्मिक रुचि थी, वह धीरे-धीरे उम्र बढ़ने के 4 साथ-साथ बढ़ती गई। आपकी धर्मपत्नी भी धार्मिक विचारों की थी, अच्छी सैद्धान्तिक चर्चायें कर लेती थीं। नियमित स्वाध्याय से उनका ज्ञान अच्छा हो गया था। सन् 1916 में उनका स्वर्गवास हो गया। धर्मपत्नी के वियोग
-
-
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
2907
54545454545454545454545454545451