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1545946596454679694695745454545454545 卐 वीरसेन स्वामी को जिनसेन और दशरथ गुरु के अतिरिक्त विनयसेन 卐
TE मुनि भी शिष्य थे, जिनकी प्रबल प्रेरणा पाकर आचार्य जिनसेन ने 'पार्वाभ्युदय'
काव्य की रचना की थी। इन्हीं विनयसेन के शिष्य कुमारसेन ने आगे चलकर काष्ठासंघ की स्थापना की थी, ऐसा देवसेनाचार्य ने अपने 'दर्शनसार' में लिखा
है। जयधवला टीका में श्रीपाल, पद्मसेन और देवसेन इन तीन विद्वानों का । उल्लेख और भी आता है, जो सम्भवतः जिनसेन के सधर्मा या गुरुभाई थे।
श्रीपाल को तो जिनसेन ने जयधवला टीका का संपालक कहा है और आदिपुराण के पीठिकाबन्ध में उनके गुणों की काफी प्रशंसा की है।
अब तक के अनुसंधान के आधार पर जिनसेनाचार्य की गुरुपरम्परा (गुरुवंश) निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट की जा सकती है
आर्य चन्द्रसेन
आर्य
आर्यनन्दि
वीरसेन
वीरसेन
जयसेन
जयसेन
दशरथगुरु जिनसेन
विनयसेन
श्रीपाल
पदमसेन
देवसेन
कुमारसेन
गुणभद्र लोकसेन
(काष्ठासंघप्रवर्तक
स्थान-विचार-दिगम्बर मनियों को पक्षियों की भांति अनियतवास बतलाया गया है। प्रावड़योग के अतिरिक्त उन्हें किसी बड़े नगर में पांच दिन-रात और छोटे ग्राम में एक दिन-रात से अधिक ठहरने की आज्ञा नहीं है। इसलिये किसी भी दिगम्बर मुनि के मुनिकालीन निवास का उल्लेख प्रायः नहीं मिलता है। अतः निश्चित रूप से यह कह सकना कठिन है कि जिनसेन अमुक नगर
में उत्पन्न हुए थे और अमुक स्थान पर रहते थे। पुनरपि इनसे सम्बन्ध रखने LC वाले तथा इनके अपने ग्रन्थों में बंकापुर, बाटग्राम तथा चित्रकूट का उल्लेख
आता है अपने साहित्यिक जीवन में आचार्य जिनसेन का निश्चित ही इन भतीन स्थानों से सम्बन्ध था-चित्रकूट, बंकापुर तथा वाटग्राम।
चित्रकूट वर्तमान चित्तौड़ है। इसी चित्रकूट में सिद्धान्तग्रन्थों के | रहस्यवेत्ता श्रीमानुएलाचार्य निवास करते थे, जिनके पास जाकर जिनसेन 1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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