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अध्याय की समाप्ति प्रसंग में उन्होंने लिखा है-" इति सर्वार्थसिद्धि संज्ञायां
तत्वार्थवृत्तौ प्रथमोऽध्यायः समाप्तः " ।
सूत्रगत प्रत्येक पद पर साङ्गोपांग विचार करना इस ग्रन्थ की विशेषता है। मत-मतान्तरों को भी उपस्थित किया गया है। सर्वार्थसिद्धि में जगह-जगह व्याकरण के नियमों का निर्देश करते हुए रचना में भी काठिन्य नहीं आया। अन्य दर्शन सिद्धान्तों को बखूबी से प्रस्तुत कर उनका निराकरण भी सरलता से किया गया है।
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आचार्य पूज्यपाद ने इसमें आगमिक परम्परा का पूरा निर्वहन किया है। सिद्धान्तच्युति कहीं भी नहीं है। इसकी रचना शैली की विशिष्टता तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय के द्वितीय सूत्र में केवल 'तत्त्व' या 'अर्थ' पद न रखकर तत्त्वार्थ पद की सहेतुकता का विवेचन दर्शनान्तरों का निर्देश करते हुए विशद रूप से प्रस्तुत करना है। इसमें भाषा-सौष्ठव का भी पूर्ण ध्यान दिया गया है। इस ग्रन्थ की प्रशंसा में टीकाकार स्वयं लिखते हैं
स्वर्गापवर्गसुखमाप्तुमनोभिरार्यैः जैनेन्द्रशासनवराभृसारभूता । सर्वार्थसिद्धिरिति सद्भिरुपात्रनामा तत्त्वार्थवृत्तिरनिशंमनसा प्रधार्या ।। अर्थात् जो आर्य स्वर्ग और मोक्षसुख के इच्छुक हैं, वे जैनेन्द्र शासनरूपी उत्कृष्ट अमृत में सारभूत और सज्जन पुरुषों द्वारा रखे गये 'सर्वार्थसिद्धि' इस नाम से प्रख्यात इस तत्त्वार्थ वृत्ति को निरन्तर मनःपूर्वक धारण करें । पूज्यपाद स्वामी ने स्वयं इसके प्रयोजन को बतलाया हैं। इसके चिन्तन-मनन से पुरुषार्थों में शिरोमणि मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि होती है। जैनेन्द्र व्याकरण
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हैं।
'पूज्यपाद' ने 'पाणिनीय शब्दानुशासन" के आधार पर जैनेन्द्र व्याकरण की रचना की है। इसमें पाणिनीय और चान्द्र दोनों व्याकरणों का आश्रय लिया गया है। इस जैनेन्द्र शब्दानुशासन में 5 अध्याय, 20 पाद और 3067 सूत्र इसका प्रथम सूत्र "सिद्धिरनेकान्तात्" अर्थात् शब्द की सिद्धि अनेकान्त से होती है। सूत्र का अधिकार ग्रन्थ परिसमाप्ति तक | संज्ञा प्रकरण सांकेतिक है। इसमें धातु, प्रत्यय, प्रातिपदिक, विभक्ति, समास आदि के लिए अतिसंक्षिप्त संज्ञाएं हैं। इसमें सन्धि के सूत्र चतुर्थ एवं पञ्चम अध्याय में है । सन्धि प्रकरण पाणिनि सदृश होने पर भी प्रक्रिया की दृष्टि से सरल है। स्त्रीप्रत्यय, समास एवं कारक सम्बन्धी विशिष्टताओं से विशिष्ट
है । पञ्चमी विभक्ति के बाद चतुर्थी, तृतीया, सप्तमी एवं षष्ठी विभक्ति का प्रतिपादन है। इसमें तिङ्न्त, तद्धित और कृदन्त प्रकरणों में भी पाणिनि की
5 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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