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द्वारा रचित सर्वार्थसिद्धि नामक ग्रन्थ है। तत्त्वार्थसूत्र में मृद्धपिच्छ आचार्य ने TE जिन दार्शनिक उद्भावनाओं का उद्भावन किया था, उनका पूज्यपाद ने 1.
विस्तार के साथ सर्वार्थसिद्धि में प्रतिपादन किया। इसके नामकरण का
प्रयोजन यह है कि इस सर्वार्थसिद्धि' नामक वृत्ति ग्रन्थ के मनन-चिन्तन करने - से सब प्रकार के अर्थों की अथवा सब अर्थों में श्रेष्ठ मोक्षसुख की प्राप्ति होती . 51 है। तत्त्वार्थ सूत्र के जिस प्रमेय का इसमें वर्णन है, वह सब पुरुषार्थों में । LE प्रधानभूत मोक्ष पुरुषार्थ का साधक है।
भारतीय दर्शनों के मूल में मोक्ष पुरुषार्थ की प्राप्ति का ही लक्ष्य रहा 51 है। प्रत्येक दर्शन ग्रन्थ का मंगलाचरण मोक्ष के साधन रूप में वर्णित है। 51
सर्वार्थसिद्धिकार सर्वप्रथम "सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः" सूत्र पर सविस्तार वृत्ति लिखने को उद्यत हुए थे। उन्होंने सभी दर्शनों के सार रूप । में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। सर्वार्थसिद्धि के विविध स्थलों में अन्य दर्शन सिद्धान्तों का खण्डन करते हुए अनेकान्त-सिद्धि की है। मोक्ष के यथार्थ स्वरूप प्रतिपादन इसकी विशेषता है। दर्शन का आधार बुद्धि प्रसूत तर्क होता है, जिसका आश्रय पूज्यपाद ने पूर्णरूप से लिया है। अतः सच्चे अर्थ में वे दार्शनिक
थे।
उपर्युक्त विशेषताओं के पर्यालोचन से स्पष्ट है कि आचार्य पूज्यपाद ने आध्यात्मिक विकास पर अत्यधिक बल देकर भारतीय गौरव-गरिमा को बढ़ाने में अपूर्व सहयोग दिया है। वह श्रमणसंस्कृति के अग्रदूत थे। उन्होंने सम्पूर्ण जगत् को आध्यात्मिक विकास का सन्देश दिया है। जैन संस्कृति के श्रमण का मूल उद्देश्य ही होता है-विभाव से हटकर स्वभाव में रमण करना, परभाव से हटकर स्वभाव में आना। प्रदर्शन में विश्वास न कर आत्मदर्शन करना । उन्होंने मात्र आत्मोन्नति के लिए दीक्षा अंगीकार की थी। आत्मसन्तुष्टि हेत विविध विषयों का आश्रय लेकर साहित्य-सजन किया जिसका विवरण अभीप्सित होने से प्रस्तुत है
सर्वार्थसिद्धि-उमास्वामी रचित तत्त्वार्थसूत्र पर आचार्य पूज्यपाद द्वारा संस्कृत TE गद्य में लिखी हुई टीका को "सर्वार्थसिद्धि" नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। दस
अध्यायों में सम्पूर्ण वृत्ति ग्रन्थ है। दार्शनिक दृष्टि से इसकी अत्यधिक महत्ता है।
तत्त्वार्थ सूत्र के प्रत्येक सूत्र की विशद व्याख्या इसमें की गयी है। या ग्रन्थकार पूज्यपाद स्वामी ने स्वयं इसे वृत्ति ग्रन्थ कहा है। ग्रन्थान्तर्गत प्रत्येक प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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