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459954545454545454545457957457454545 15 वैयाकरण-आचार्य पूज्यपाद पाणिनि व्याकरण, कात्यायन के वार्तिक और 4
पतञ्जलि के महाभाष्य के पूर्णज्ञाता मनीषी थे। इन्होंने अपने जैनेन्द्र व्याकरण में पाणिनि व्याकरण के स्वर-वैदिक प्रकरण को छोड़कर उनके अधिकांश
व्याकरण की संरक्षा की। पाणिनीय गणपाठ को बहलरूप में स्वीकार किया F- है। पाणिनि व्याकरण का निराकरण न करके उसके बहुभाग को प्रकारान्तर
से ग्रहण किया है। कात्यायन के वार्तिक और पतञ्जलि के महाभाष्य के माध्यम से जिन नवीन-नवीन रूपों को सिद्ध किया गया है, उन्हें देवनन्दी पूज्यपाद ने सूत्रों में स्वीकार कर लिया है।
शब्दशास्त्र के उद्भट मनीषी पूज्यपाद व्याकरण वेत्ताओं में श्रेष्ठतम थे। इनकी कृति 'जैनेन्द्र व्याकरण' एक आदर्श रचना है। इसीलिए आचार्य गणनन्दि ने इसके सूत्रों का आश्रय लेकर जैनेन्द्र प्रक्रिया लिखी और मंगलाचरण में लिखा है
नमः श्रीपूज्यपादाय लक्षणं यदुपक्रमम्।
यदेवात्र तदन्यत्र यत्रात्रास्ति न तत्ववचित्।।
अर्थात् जिन्होंने लक्षणशास्त्र की रचना की, मैं उन आचार्य पूज्यपाद 57 को प्रणाम करता हूँ। उनके इस लक्षणशास्त्र की महत्ता इसी से स्पष्ट है कि E जो इसमें है. वही अन्यत्र है और जो इसमें नहीं है, वह अन्यत्र भी नहीं है।
अध्यात्मज्ञानी-पूज्यपाद अध्यात्म के अनुभवशील तत्त्व साक्षात्कारी वीतरागी सन्त थे। साधु का जीवन ही अध्यात्मपरक होता है। इनके द्वारा रचित
समाधितंत्र, इष्टोपदेश, दशभक्त्यादि रचनाएं आत्मतत्त्व की प्रतिपादिका हैं। - इनमें वर्णित तत्त्वों/तथ्यों को एक अनुभवशील तत्त्वद्रष्टा मनीषी ही प्रस्तुत
कर सकता है। उन्होंने जीवन का सूक्ष्म एवं गम्भीर परिशीलन तथा अवलोकन किया था। उनके द्वारा प्रतिपादित विषय उनके हृदय से निकले हुए शुद्धभाव हैं, जिनमें न आडम्बर है और न वञ्चना एवं छलना। आत्मतत्त्व का प्रतिपादन पूज्यपाद जैसे परिपक्व विचारों वाले अनुभूति युक्त मनीषी द्वारा किया जाना बिल्कुल संभव है। उनका जीवन शुद्ध आचार और विचार सम्पन्न था। अतएव अध्यात्मविद्या के पूर्ण अधिकारी थे। उन्होंने धर्मस्वरूप को शब्दों से ही नहीं अपितु आचार से व्यक्त किया। अध्यात्मिक प्रभाव की यही विशेषता होती है कि वह आन्तरिक दृष्टि से कठोर और तपस्वी होता है तथा बाह्यतः नम्र
और क्षमाशील होता है। वस्तुतः पूज्यपाद ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे। -दार्शनिक-पूज्यपाद गम्भीर विचारक, युगद्रष्टा. जीव के कलापक्ष को उजागर
करने वाले महान दार्शनकि थे। इनकी दार्शनिकता का प्रबल प्रमाण इनके
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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