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आचार्य जिनसेन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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प्रतिभा और कल्पना के धनी आचार्य जिनसेन संस्कृत काव्य-गगन के - पूर्णचन्द्र हैं। ये ऐसे प्रबुद्धाचार्य हैं, जिनकी वर्णन-क्षमता और काव्य-प्रतिभा :
अपूर्व है। महापुराण के रचयिता दो विद्वान् हैं-आचार्य जिनसेन और उनके योग्य शिष्य गुणभद्राचार्य | यह विशाल रचना 76 पर्यों में विभक्त है। सैंतालीस
पर्व तक की रचना का नाम 'आदिपुराण' है, और उसके बाद अड़तालीस से प छियन्तर पर्व तक का नाम उत्तरपुराण' है। आदि पुराण के सैंतालीस पर्यों पर
में प्रारम्भ के बयालीस पर्व और तैंतालीसवें पर्व के तीन श्लोक स्वामी जिनसेन द्वारा रचित हैं और अवशिष्ट पांच पर्व तथा उत्तरपुराण श्री जिनसेनाचार्य के 7 प्रमुख शिष्य भदन्त गुणभद्र द्वारा विरचित हैं।
संस्कृत-कवियों में अंगुलिगण्य ही ऐसे हैं, जिन्होंने अपने विषय में कोई ऐतिहासिक विवरण दिया हो। उनमें भगवज्जिनसेनाचार्य अन्यतम हैं। स्वामी जिनसेन का जन्म किस जाति-कुल में हुआ, वे किसके पुत्र थे, जन्म-स्थान और जन्म-काल क्या था आदि बातों के सम्बन्ध में कुछ निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। पुनरपि अन्तःसाक्ष्यों और बाह्य साक्ष्यों के आधार पर तत्तविषयक जो भी सामग्री उपलब्ध होती है, वही मान्य है।
_आदिपुराण के अनुशीलन से ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य जिनसेन TH का जन्म किसी ब्राह्मण परिवार में हुआ होगा। क्योंकि आदिपुराण पर मनुस्मृति, .
याज्ञवल्क्य स्मृति और ब्राह्मण ग्रन्थों का पर्याप्त प्रभाव दिखलाई पड़ता है। समन्वयात्मक उदार दृष्टिकोण के साथ ब्राह्मणधर्म के अनेक तथ्यों को जैनत्व : प्रदान करना, इन्हें जन्मना ब्राह्मण सिद्ध करने का प्रबल अनुमान है। निश्चित रूप से इनका पाण्डित्य ब्राह्मण का है और तपश्चरण क्षत्रिय का। अतएव यह आश्चर्य नहीं कि जिनसेन 'ब्रह्मक्षत्रिय' रहे हों। देवपारा के सेनराजाओं के शिलालेखों में 'ब्रह्मक्षत्रिय' शब्द आया है। सेन नामान्त जैनाचार्य सेन । राजाओं से सम्बद्ध थे। इस परिस्थिति में आचार्य जिनसेन को ब्रह्मक्षत्रिय मानने ॥ में कोई विप्रतिपत्ति दिखलाई नहीं पड़ती। आदिपुराण के उल्लेखों से भी इनका ब्रह्मक्षत्रीय होना ध्वनित होता है। इस ग्रन्थ में अक्षत्रिय को क्षत्रिय-कर्म में
दीक्षित होने तथा सम्यक चारित्र का पालन कर क्षत्रिय होने का उल्लेख आया ना है यहाँ प्रकरणवशात् अक्षत्रिय का अर्थ ब्राह्मण ध्वनित होता है। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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