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है, सर्वज्ञ देव से समस्तशास्त्रों की मूर्तिस्वरूप दिव्यध्वनि प्रकट होती है अथवा - उदयाचल के तट से देदीप्यमान सूर्य प्रकट होता है, उसी प्रकार उन वीरसेन - स्वामी से जिनसेन मुनि प्रकट हुए। पद और वाक्य की रचना में प्रवीण होना,
दूसरे पक्ष का निराकरण करने में तत्परता होना, आगम विषयक उत्तम पदार्थों T- को अच्छी तरह समझना, कल्याणकारी कथाओं के कहने में उत्तममार्ग युक्त
कविता का होना-ये सब गुण जिनसेनाचार्य को पाकर कलिकाल में भी चिरकाल तक कलंकरहित होकर स्थिर रहे थे। जिस प्रकार चन्द्रमा में चाँदनी, सूर्य में प्रभा और स्फटिक में स्वच्छता स्वभाव से ही रहती है, उसी प्रकार
जिनसेनाचार्य में सरस्वती भी स्वभाव से ही रहती हैं। जिस प्रकार दर्पण TE में प्रतिबिम्बित सूर्य के मण्डल को बालक लोग भी शीघ्र समझ जाते हैं, उसी
प्रकार जिनसेनाचार्य के शोभायमान वचनों में समस्त शास्त्रों का सदभाव था, यह बात अज्ञानी लोग भी शीघ्र ही समझ जाते थे।
जिनसेन सिद्धान्तज्ञ तो थे ही, साथ ही उच्चकोटि के कवि भी थे। उनकी कविता में ओज, माधुर्य और प्रसाद है, प्रवाह है, अलंकार हैं, सरसता एवं सुबोधता का मणि-काञ्चनमय संयोग है। जिनसेनाचार्य को वस्तुतत्त्व का यथार्थ निरूपण करना ही रुचिकर था, दूसरों की प्रसन्नता को तोड़-मरोड़कर अन्यथा रूप से प्रस्तुत करना उनका स्वभाव नहीं था। वह स्पष्ट रूप से कहते थे कि दूसरा व्यक्ति सन्तुष्ट हो अथवा न हो, कवि को अपना कर्तव्य करना - चाहिए। साहित्यिक सेवा
स्वामी वीरसेन के शिष्य जिनसेनाचार्य काव्य, व्याकरण, नाटक, भी अलंकारशास्त्र, दर्शन, आचार, कर्मसिद्धान्त प्रभृति अनेक विषयों के बहुज्ञ
विद्वान थे। जिनसेन स्वामी कृत चार रचनाओं का उल्लेख तो अवश्य मिलता है। किन्तु उपलब्ध रचनाएँ केवल तीन ही हैं। यथा- 1. पाश्र्वाभ्युदय, 2. वर्धमानपुराण (अनुपलब्ध), 3. जयधवलाटीका और 4. आदिपुराण। इन
रचनाओं का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है। 51 पाश्र्वाभ्युदय-पार्वाभ्युदय महाकवि कालिदास-रचित विश्वविश्रुत मेघदूत - नामक खण्डकाव्य की समस्यापूर्ति रूप है। इसमें मेघदूत के कहीं एक और 1
कहीं दो पादों को लेकर श्लोक-रचना की गई है। इस प्रकार इस पार्वाभ्युदय 卐काव्यग्रन्थ में सम्पूर्ण मेघदूत समाविष्ट एवं अन्तर्विलीन हो गया है। ' TE पार्वाभ्युदय मेघदूत के ऊपर समस्यापूर्ति के द्वारा रचा हुआ सर्वप्रथम स्वतंत्र :
। ग्रन्थ है। इसकी भाषा और शैली बहुत ही मनोहर है। मेघदूत के । F1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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