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45454545454545454545454545454545 4 वास्तव में आदिपुराण संस्कृतसाहित्य का एक अनुपम रत्न है। ऐसा - कोई विषय नहीं है, जिसका इसमें प्रतिपादन न किया गया हो।
सकल शास्त्रवेत्ता मुनिराज लोकसेन कवि, (जो गुणभद्राचार्य के मुख्य 1 शिष्य थे,) ने आदिपुराण और उसके रचयिता जिनसेन स्वामी के सम्बन्ध में
- उचित ही कहा है-जो कवियों के द्वारा स्तुत्य हैं, निर्मल मुनियों के समूह - जिनकी स्तुति करते हैं, भव्य जीवों का समूह जिनका स्तवन करता है, जो 1 समस्त गुणों से युक्त हैं, जो दुष्टवादी रूपी हाथियों को जीतने के लिये सिंह
के समान हैं, समस्त शास्त्रों को जानने वाले हैं और सब राजाधिराज जिन्हें नमस्कार करते हैं, वे जिनसेनाचार्य जयवन्त रहें। हे मित्र! यदि तुम सारे कवियों की सक्तियों को सुनकर सहृदय बनना चाहते हो, तो कविवर जिनसेनाचार्य के मुख-कमल से कहे हुए आदि पुराण को सुनने के लिये अपने ।कानों को समीप लाओ
मुजफ्फरनगर
डा. जयकुमार जैन डा. सुषमा
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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