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स्वामी के गुरु वीरसेन ने समस्त सिद्धान्तग्रन्थों का अध्ययन कर उपरितन,
निबन्धन आदि आठ अधिकारों को लिखा था। यही बात श्रीधर विवुध ने भी - अपने गद्यात्मक श्रुतावतार में कही है। अतः दोनों श्रुतावतारों (इन्द्रनन्दी श्रुतावतार :
और श्रीधरविवधु-गद्यात्मक श्रुतावतार) के आधार पर यह बात सिद्ध होती है कि वीरसेन के गुरु एलाचार्य थे। परन्तु यह एलाचार्य कौन थे, इसका पता नहीं चलता। वीरसेन के समयवर्ती एलाचार्य का अस्तित्व किन्हीं अन्य ग्रन्थों से समर्थित नहीं होता। धवला में स्वयं स्वामी वीरसेन ने "अज्जज्जनंदिसिस्सेण. .." आदि गाथा द्वारा जिन आर्यनन्दि गुरु का उल्लेख किया है, सम्भवतः वही एलाचार्य कहलाते हों। अमोघवर्ष के राज्यकाल शक सम्वत 788 की एक प्रशस्ति एपिग्राफिआ इण्डिका' भाग 6, पृ0 102 पर मुद्रित है। उसमें लिखा है कि गोविन्दराज ने, जिनके उत्तराधिकारी अमोघ वर्ष थे, केरल, मालवा, गुर्जर और चित्रकूट को जीता था और सब देशों के राजा अमोघवर्ष की सेवा
में रहते थे। हो सकता है इनमें वर्णित चित्रकूट वही चित्रकूट हो, जहाँ 51 श्रुतावतार के उल्लेखानुसार एलाचार्य रहते थे और जिनके पास जाकर TE वीरसेनाचार्य ने सिद्धान्तग्रन्थों का अध्ययन किया था। मैसूर राज्य के उत्तर - में एक चित्तलदुर्ग का नगर है। यहाँ बहुत सी पुरानी गुफाएं हैं और पांच
सौ वर्ष पुराने मंदिर हैं। श्वेताम्बर मुनि शीलविजय ने इसका उल्लेख चित्रगढ़' नाम से किया है। कदाचित् एलाचार्य का निवास स्थान यही चित्रकूट हो।
वटग्राम या वाटग्राम या वटपद को एक मानकर डॉ0 आलतेकर जैसे LE कुछ विद्वानों ने बड़ौदा के साथ इसका साम्य स्थापित किया है। वाटग्राम - में रहकर जिनसेनाचार्य के गुरु वीरसेनाचार्य ने आनतेन्द्र के बनवाये हुए जैन
मंदिर में बैठकर संस्कृत-प्राकृत-भाषा मिश्रित धवला' नामक टीका 72 हजार श्लोक-प्रमाण में लिखी थी और फिर दूसरे कषायप्राभूत के पहले स्कन्ध भी चारों विभक्तियों पर 'जयधवला' नाम की 20 हजार श्लोक-प्रमाण टीका लिखी। उनके स्वर्गवासी हो जाने पर उनके शिष्य श्री जिनसेन आचार्य ने
चालीस हजार श्लोक और बनाकर जयधवला टीका पूर्ण की। इस प्रकार की जयधवला टीका 60 हजार श्लोक-प्रमाण में निर्मित हुई।
वाटग्राम कहाँ पर है, इसका भी पता नहीं चलता, परन्तु वह गुर्जरार्यानुपालित था। अर्थात् अमोघवर्ष के राज्य में था और अमोघवर्ष के राज्य के उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण तक फैले होने के कारण निश्चित रूप से यह कह सकना कठिन है कि वाटग्राम इतने विस्तृत राज्य में कहाँ पर रहा होगा। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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