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बकापुर उस समय वनवास देश की राजधानी था और जो इस समय कर्नाटक प्रान्त के धारवाड़ जिले में है। इसे राष्ट्रकूट के नरेश अकालवर्ष के सामन्त लोकादित्य के पिता बंकेयरस ने अपने नाम से राजधानी बनाया था। जैसा कि उत्तरपुराण की प्रशस्ति के श्लोकों से सिद्ध होता है। बंकापुर में रहकर जिनसेनाचार्य और भदन्त गुणभद्र ने महापुराण की रचना की थी । जिनसेन के समय में राजनैतिक स्थिति सुदृढ़ थी और शास्त्र समुन्नति का युग था । तत्कालीन राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष (सन् 815-877 ई) स्वामी जिनसेन के अनन्यभक्तों में से था । अमोघवर्ष स्वयं कवि और विद्वान् था । अमोघवर्ष का राज्य केरल से लेकर गुजरात, मालवा और चित्रकूट तक फैला हुआ था। राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष की राजधानी मान्यखेट, जो इस समय मलखेड़ नाम से प्रसिद्ध है, उस समय कर्नाटक और महाराष्ट्र इन दोनों की राजधानी थी। आचार्य जिनसेन का सम्बन्ध चित्रकूट आदि से होने तथा अनन्यभक्त राजा अमोघवर्ष द्वारा सम्मानित होने से इनके जन्मस्थान अथवा निवास स्थान का अनुमान महाराष्ट्र और कर्नाटक के सीमावर्ती प्रदेशों में किया जा सकता है।
श्वेताम्बर मुनि शीलविजय ने अपनी तीर्थयात्रा में चित्रगढ़ बनौसी और कापुर का एक साथ उल्लेख किया है। इससे सिद्ध होता है कि इन स्थानों के बीच अधिक अन्तर नहीं होगा।
समय- विचार - आदिपुराण से जिनसेनाचार्य के काल का पता नहीं चलता, तथापि अन्य प्रमाणों से ज्ञात होता है कि स्वामी जिनसेन हरिवंशपुराणकार जिनसेन के ग्रन्थकर्तृत्वकाल (शक् सम्वत् 705. ई. 783) में जीवित थे। हरिवंशपुराण के कर्ता जिनसेन ने आदिपुराणकार जिनसेनाचार्य के गुरु वीरसेन और जिनसेन का बड़े गौरव के साथ उल्लेख किया है जिन्होंने परलोक को जीत लिया है और जो कवियों के चक्रवर्ती हैं, उन वीरसेन गुरु की कलंकरहित कीर्ति प्रकाशित हो रही है। जिनसेन स्वामी ने श्री पार्श्वनाथ भगवान् के गुणों की जो अपरिमित स्तुति बनायी अर्थात् पार्श्वभ्युदय काव्य की रचना की है, वह उनकी कीर्ति का अच्छी तरह कीर्तन कर रही है और उनके वर्द्धमान पुराण रूपी उदित होते हुए सूर्य की उक्ति रूपी किरणें विद्वत्पुरुषों के अन्तःकरण रूपी स्फटिक भूमि में प्रकाशमान हो रही हैं।
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उपर्युक्त संदर्भ में प्रयुक्त 'अवभासते', 'संकीर्तयति', 'प्रस्फुरन्ति' जैसे वर्तमानकालिक क्रियापद आदि पुराण के रचयिता जिनसेन को हरिवंशपुराणकार जिनसेन का समकालीन सिद्ध करते हैं। साथ ही इस बात का भी ज्ञान होता
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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