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1 ने इनका नाम योगीन्दु नहीं लिखा है। लिपिकारों ने योगेन्द्र जैसे पाठभेद
- इनके नामों के दिये हैं; किंतु यह योगीन्द्र' नाम से ही साम्य रखता है, योगीन्दु Pा से नहीं। काल निर्णय
जोइन्दु के कालनिर्णय के बारे में कई अवधारणायें प्रचलित हैं; उनमें प्रमुख हैं1. जोइन्दु 873-973 ई. के मध्य (वीर निर्वाण की 15वीं शताब्दी में) हुये
थे।
2. भाषा के आधार पर डॉ. हरिवंश कोछड़ ने इन्हें 8-9वीं शताब्दी ई. का ___माना है, तो राहुल सांकृत्यायन ने 1000 ई. इनका काल निर्धारित किया
3. छठी शताब्दी ई. के उत्तरार्द्ध में योगीन्दु का काल डॉ. ए.एन.
उपाध्ये व डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री ने स्वीकार किया है। सिद्धांत सारादिसंग्रह के सम्पादक पं. परमानन्द सोनी ने इन्हें वि.स. 1211 के पहले का विद्वान् माना है।
आज की परम्परा इन्हें छठी शताब्दी ई. का ही स्वीकारती है। किन्तु अमृताशीति ग्रंथ के अवलोकन के उपरांत इस मान्यता पर प्रश्न चिन्ह अंकित
हो जाता है, क्योंकि उन्होंने 'अमृताशीति' में आ. समन्तभद्र, आ. अकलंक 4. देव, विद्यानन्दिस्वामी, जटासिंहनन्दि, भर्तृहरि आदि के नाम से सात पद्य उद्धृत
कर उन्हें मूल ग्रंथ में समाहित किया है। 1 इनमें से आचार्य समन्तभद्र व भर्तृहरि के नाम से उद्धृत पद्यों के 4: अतिरिक्त अन्य कोई भी पद्य भट्ट श्री अकलंक आदि आचार्यों के
उपलब्ध साहित्य में प्राप्त नहीं होता है। आ. विद्यानन्दि के नाम से उद्धृत F1 जो पद्य हैं वे उन्होंने भी अपने ग्रंथों में कहीं अन्यत्र से उद्धृत किये हैं। अतः ।
यह निर्धारण करना कि जोइन्द किस समय हये इन पद्यों व इनके कर्ता - आचार्यों के निर्धारण पर निर्भर करता है। यही इनके काल निर्धारण का प्रमुख
आधार होगा। भाषा आदि पर आधारित निर्णय तो अनुमान मात्र हैं। तथा दो आचार्यों की विषय व शैलीगत समानता भी काल-सामीप्य या काल-ऐक्य का
कोई बड़ा आधार नहीं हैं। अतः इन उल्लिखित आचार्यों के स्थितिकाल के 21 आधार पर जोइन्दु का काल छठी से दसवीं शताब्दी ई. के मध्य संभाव्य है।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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