________________
5945951451461451566145174594595545454545 ' जीवन परिचय - जोइन्दु के जीवन के बारे में जितने अंधकार में अनुसंधान कर्ता हैं, LE
संभवतः इतनी निरूपायता अन्य किसी आचार्य के बारे में वे महसस नहीं करते हों। एकमात्र सूत्र 'प्रभाकर भट्ट' नामक शिष्य का उल्लेख है, किन्तु 57 वह भी कोई ऐतिहासिक व्यक्तित्व नहीं है। यहाँ तक कि जोइन्दु साहित्य : के बाहर कहीं उनका नाम उल्लेख तक नहीं हैं। अतः हमें तो जोइन्दु का व्यक्तित्व उनके कृतित्व से भिन्न कुछ भी कहने योग्य नहीं रह जाता है। जोइन्दु के कृतित्व के आधार पर इनके व्यक्तित्व का अनुमान एक अनासक्त योगी तथा उत्कृष्ट साधक के रूप में लगाया जा सकता है। इनके विचार क्रियाकाण्ड व रूढ़िवाद के प्रति खण्डनपरक तथा क्रांतिकारी हैं। इससे प्रतीत होता है कि संभवतः ये एकल विहारी ही रहे होंगे। क्योंकि न तो इनकी गुरु परम्परा का कोई स्पष्ट लेख मिलता है, और अन्य किसी परवर्ती आचार्य या विद्वान ने अपने गुरु के रूप में इनका स्मरण किया हो-ऐसा भी कोई उल्लेख नहीं मिला। महापण्डित राहुल सांस्कृत्यायन ने इनका निवास क्षेत्र राजस्थान होने की संभावना व्यक्त की है। रचनायें
जोइन्दु के नाम से श्री 'परमात्मप्रकाश' व 'योगसार' ग्रन्थ तो असंदिग्ध प्रामाणिक कृतियाँ हैं। इनके अतिरिक्त अमृताशीति, निजात्माष्टक, नौकारश्रावकाचार, अध्यात्मसंदोह, सुभाषिततन्त्र, तत्त्वार्थटीका व दोहापाहुड़ +
ये सात रचनायें और जोइन्दु कृत मानी गयी है। इनमें से दोहापाहुड़ तो । मुनि रामसिंह की कृति है-यह प्रमाणित हो चुका है। तथा अमृताशीति व
निजात्माष्टक के अतिरिक्त कोई कृति उपलब्ध नहीं है. अतः ये दोनों ही विचारणीय रह जाती है।
अमृताशीति के टीकाकार आचार्य बालचन्द्र अध्यात्मी ने टीका के प्रारंभ में कहा है कि "श्री योगीन्द्रदेवरु प्रभाकर भट्टप्रतिषोधनार्थममृताशीत्यमिधानग्रन्थं माडुत्तम......" इत्यादि। इसमें प्रभाकर भट्ट का नामोल्लेख 1 परमात्मप्रकाश कर्ता जोइन्दु से अभिन्न सिद्ध करने के लिये पर्याप्त प्रमाण 15 है। परमात्मप्रकाश में वे कहते हैं "भट्ट प्रहायर-कारणंइ मइं पुणु वि पउत्रु".
अर्थात् इस ग्रंथ की रचना में मैं भट्टप्रभाकर के कारण प्रवृत्त हुआ हूँ।" अतः 21 अमृताशीति तो सुनिश्चितरूप से परमात्मप्रकाश कर्ता जोइन्दु की ही रचना है।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
337 बारासETEE मामा
ना