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45454545454545454545454545454545 卐विवेकसागर जी के संघ में रहने का भी सुयोग मिला।
एक बार आचार्यकल्प श्री श्रुतसागर का संघ महावीर जी से सवाई धोपुर तक विहार किया। मार्ग में बनास नदी आयी नांव में बैठकर सभी साधुओं ने नदी पार करने का निश्चय किया। नदी में पानी बहुत था। नाव - कुछ पुरानी थी इसलिये नदी के बीच में पहुंचते-पहुंचते वह डगमगाने लगी।
- नाविक भी घबरा गया। सभी ने णमोकार मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया। भ नदी के उफान को देखकर सभी को जीवन का अंत दिखाई देने लगा। इतने TE में ही नाविक के हाथ में एक डंडा आ गया जिसके सहारे नदी पार हो गई।
- डूबते को तिनके का सहारा वाली कहावत चरितार्थ हो गई। सभी को दूसरा +जीवन मिला । सवाई माधोपर संघ पहुंचा। वहां पहाड़ के नीचे एकमात्र टावल TE पहिने बालक उमेश 8 घंटे तक खड़े होकर चिंतन में लगा रहा। बाहरी जीवन
से एकदम शून्य बना रहा। उपाध्याय श्री की यह प्रथम साधना थी जिसमें + वे पूर्ण रूप से सफल रहे। सवाईमाधोपुर से निवाई तक आचार्यकल्प श्रुतसागर TE जी की सेवा में रहे। निवाई से उनका भी साथ छोड़ दिया और वहां से सागर TE
पहंचे। सागर में भी मन नहीं लगा। साधु-जीवन में प्रवेश करने की छटपटाहट लग रही थी इसलिये वहां से सोनगिरि जा पहुंचे। सोनगिरि में उस समय
आचार्य श्री सुमतिसागर जी का संघ था। आचार्य श्री के संघ में आप पहिले ना भी रह चुके थे। तथा वे आपकी साधुओं के प्रति अपार भक्ति एवं वैराग्य 44 परिणामों को देख चुके थे। इसलिये जैसे ही आपने आचार्य श्री से क्षुल्लक TE दीक्षा देने की प्रार्थना की। आचार्य श्री ने अपनी अनुमति दे दी। उसी दिन
से आपके प्रति श्रावकों की भक्ति एवं श्रद्धा उमड़ने लगी। आखिर 5 नवम्बर सन् 1976 का शुभ दिन आया। एक भव्य समारोह में आपको आचार्यश्री ने क्षुल्लक दीक्षा दे दी। आपने केश-लौंच किया। इसके पूर्व भी आपने केश-लाँच करने का अभ्यास कर लिया था। क्षुल्लक बनते ही आपका नया जीवन प्रारंभ हो गया। आपका नाम क्षुल्लक गुणसागर रखा गया। क्षुल्लक जीवन की साधना :
क्षुल्लक पद प्राप्त करते ही कठोर साधना का मार्ग अपनाया। LE चिंतन-मनन एवं स्वाध्याय प्रधान आपका जीवन बनने लगा। एक बार आप
सोनगिरि के त्यागी आश्रम में ध्यानस्थ थे। इतने में ही एक सर्प आया और आपके पांवों पर खेलने लगा। कभी कमंडलु पर चढ़ जाता। लेकिन आप
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर पाणी स्मृति-ग्रन्थ CELELEGESSELELELE
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