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मण्डल का कोई ऐसा ग्राम तक न था जो उपाध्याय श्री के चरणों में निवेदन के लिए प्रस्तुत न हुआ हो। किसी साधु के चातुर्मास के लिए ऐसी प्रतिस्पर्धा वर्तमान में सामान्यतया नहीं दिखालाई पड़ती।
यह सब उपाध्याय श्री जी की चारित्रिक विशेषाताओं व युगानुरूप जनसामान्य की भावनाओं को समझने का प्रतिफल है। इस सब धूमधाम से से अप्रभावित जितना पूज्य श्री को देखा अन्यत्र इतना कठिन है। शतसूर्यो की ज्योति जैसी प्रभा से दीप्त तेजस्वी आभा वाले, आत्मानुसंधान में तत्पर, अत्याधिक श्रमशील श्रमण. पूज्य उपाध्याय श्री जी को न किसी प्रचार की चाह है न प्रसार की। प्रतीत होता है कि स्वयं यश-कीर्ति उनके साथ रहने को लालायित है।
सहारनपुर पंचकल्याणक के पश्चात् 25, 26 व 27 मई को 'जैन राष्ट्रीय विज्ञान संगोष्ठी' उस पल ऐतिहासिक हो गई जब देश-विदेश के 30 से भी अधिक मूर्धन्य विद्वानों की आवाज को स्वर देते हुए प्राचार्य श्री नरेन्द्र प्रकाश जी ने कहा- आज भारत भर में विद्वानों के प्रति आत्मीयता रखने वाले और समाज में श्रद्धास्पद स्थान देने वाले कोई हैं तो वह हैं पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर। 'देश-विदेश के विद्वान इसीलिए श्रद्धापूर्वक अभिभूत पूज्य श्री उपाध्याय महाराज के चरणों में आकर होते हैं। पूज्यवर महाराज श्री भी समाज को विद्वानों का पुरुषार्थ विस्मृत नहीं होने देते। पं. मक्खनलाल शास्त्री स्मृति ग्रंथ, डा. कस्तूरचंद कासलीवाल अभिनन्दन ग्रन्थ, डॉ. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ, डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य स्मृतिग्रन्थ, प्रशममूर्ति आचार्य शांतिसागर "छांणी" स्मृति ग्रन्थ सब आपकी ही पावन प्रेरणा से प्रकाशित हुए हैं और हो रहे हैं ।
सहस्र-सहस्र श्रद्धालु और विशेषतः युवावर्ग मंत्रमुग्ध पूज्य उपाध्याय श्री जी को सुनते हैं तो प्रतीत होता है कि ये कोई नवीन साधु हैं और नवीन स्वर से प्रवचन कर रहे हैं अथवा जैन धर्म की शाश्वत् आत्मा शरीर धारण कर इस पंचमकाल में प्राणि मात्र को संजीवित करने के लिए अमृतवाणी, अभयवाणी का उच्चारण कर रही है। पूज्य श्री के उत्साह व आशीर्वाद से युवकों का कर्मोंत्साह सौ गुना बढ़ गया है। श्रमणत्व के सच्चे प्रतिनिधि,
आर्ष- परम्परा के संपोषक आराध्य श्री का सर्वस्व अर्पण इसी का नाम तो है
वैराग्य
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इस प्रकार उपाध्याय श्री जी समाज की आशाओं का केन्द्र हैं। पूज्य
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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