________________
45454545454545454545454545454545
1 ध्यान मग्न रहे। आखिर सर्प अपने-आप नतमस्तक होकर चला गया। यह
आपकी प्रथम परीक्षा थी जिसमें आप पूर्ण खरे उतरे और आपकी साधत्व वृत्ति की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी।
एक बार आप सागर में मंदिर में ध्यानस्थ थे। एक छिपकली आकर TP कंधे पर चढ़ गई। एक-दो घंटे तक वह दुपट्टे पर बैठी ही रही। महाराजश्री TE
को लगा की कोई कीड़ा शरीर पर चढ़ गया है। लेकिन वे ध्यानस्थ रहे। आखिर छिपकली उछल कर कूद गई और कहीं अन्यत्र चली गई। छिपकली के स्पर्श से ही शरीर पर फुसियां हो जाती हैं। इसके जहरीले पंजों को शरीर सहन नहीं कर सकता लेकिन क्षुल्लक गणसागर जी ने अपनी साधना से सब पर विजय प्राप्त कर ली।
इसी तरह की सर्प की एक और घटना मुंगावली में हुई। सन् 1984 में आप वहां थे। आहार लेने के पश्चात् आप प्रायः जंगल में जाकर सामायिक करते थे। एक दिन जब ध्यान मग्न थे तो एक सर्प आया और कुंडली मारकर सामने बैठ गया। फन फैलाकर आपको निहारने लगा। और अंत में नतमस्तक होकर वहां से चला गया। आपको ऐसा लगा कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
क्षु. अवस्था से ही आपको जंगल में जाकर ध्यान करने की आदत है। इसी स्वभाव के कारण आप जन संकुल शहरों की अपेक्षा छोटे गाँवों में विहार करना अधिक पसन्द करते थे। चंदेरी की घटना है, वहां से 2 कि. मी. खन्दार का अतिशय क्षेत्र है। चारों ओर घना जंगल है। आप वहीं पर ध्यान मग्न थे। आपके पास वहां का माली आया और सिंह होने की चर्चा करने लगा। इतने में ही थोड़ी देर में सिंह आ गया और दहाड़कर चला गया। सब लोग डरे हुए थे लेकिन आपको ऐसा लगा कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
ये कुछ घटनाएं हैं जो आपके साधु जीवन की कठोर चर्या, निर्भीकता, एवं सहज स्वभाव पर प्रकाश डालती हैं। मुनि बनने के पश्चात् आपकी चर्या में और भी कठोरता आ गई है। न गर्मी की भीषणता से आप घबराते हैं और
न भयंकर सर्दी की कंपकपाहट आपको भयभीत कर सकती है। सभी ऋतुओं LE में आपका समान जीवन रहता है।
इसी प्रसंग में मुझे आपकी कठोर तपश्चर्या की एक घटना और याद 1 आती है। जनवरी 90 का महिना। उस समय आप बडौत के पास ही छोटे
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
320
59595959555555555555555