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पास में सफाई कर रहा था। परदेश होने के कारण कोई गलती न हो जाय
इसीलिए मैंने उससे पूछा कि भइयाजी! जिनालय कहाँ है? वह शायद गलत - समझ गया और उसने कहा कि इस कांच के स्वाध्याय भवन में, ऊपर हैं। 57 मैं जब ऊपर पहुंचा तो क्या देखता हूँ कि आचार्य श्री सूर्यसागर जी - महाराज विद्यमान हैं और वे उस समय लेखन कार्य में संलग्न थे। मैं नमोस्तु
कहकर और धोक देकर बैठ गया। उस समय उनका तुकोगंज इन्द्रभवन 4 में ही चातुर्मास हुआ था।
आचार्य श्री जब मेरी तरफ मुखातिब हुए तो उन्होने पूछा कि कहां TE से आये हो? मैंने कहा-महाराज मैं लश्कर (ग्वा.) से आया हूँ। साथ ही साथ . मैंने अपने आने का कारण भी बता दिया और मैंने कहा महाराज मुझे यहाँ म का कुछ भी ज्ञान नहीं हैं। आचार्य श्री ने अत्यन्त कृपावन्त होकर कहा-तुम
अमुक बाजार में अमुक दलाल के पास चले जाना, वह काम करा देगा। लेकिन ' साथ ही मुझे सावधान भी कर दिया कि उससे हमारा नाम न लेना।
मैंने कहा-नहीं महाराज! ऐसा कभी नहीं होगा, और जो कुछ भी नाम 1 एवं पता बतलाया था वह मैंने नोट कर लिया। उस समय मुझे ऐसा प्रतीत
हुआ कि जैसे मेरी सारी चिन्ता दूर हो गई हो। कुछ समय से मेरे अंदर TE एक जिज्ञासा थी सो मैंने मौका पाकर पूछ ही लिया कि महाराज! पांचउदुम्बर
। फलों में ऊमर, कठूमर, बड़, पीपल और पाकर है तो कठूमर में कौन-कौन । 1 से फल आते हैं। जबकि कोई तो कठूमर में कठेर को, कोई गोंद को, कोई पपीता को बताते हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि कठूमर अंजीर को कहते हैं। अंजीर तो फल बेचने वालों में मिलते हैं, और किराने वाले के यहां मेवा की चीजों में सूखे - डोरी में पिरोये हुए रहते हैं और कहा कि संस्कृत में काकोदुम्बारिका शब्द
का काष्टोदुम्बर हुआ और काष्टोदुम्बर का अपभ्रंश होते-होते कठूमर नाम
हो गया। कठूमर का भाषा वालों ने अलंकृत पच्चू फोड़कर निकलने वाला - अर्थ कर लिया। हमने बहुत छानबीन कर कठूमर का अर्थ अंजीर निकाला
मैं थोड़ी देर बैठा और उठने को हुआ तो आचार्य श्री ने कहा-कहां TH जा रहे हो? अभी नीचे स्वाध्याय भवन में सेठ साहब व पंडित जी सब आयेंगे FI और शास्त्र वाचन होगा। मैं मन में बहुत प्रसन्न हुआ और बैठ गया। उस
- - FI प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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