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ब्रह्मचर्य प्रतिमा ले ली। त्याग की नींव विशेष से विशेषतर मजबूत होने जा
रही थी। आपके दिल में संसार की नश्वरता के बारे में बार-बार विचार उठते रहे। आपने पू. आचार्यरत्न श्री 108 विमलसागर जी के चरणकमलों पर नारियल चढ़ाते हुए कहा-'मुनि दीक्षा के मेरे भाव हैं।'
2025 चैत्र शुक्ला 13 (महावीर जयन्ती) के दिन आपने पूज्य विमलसागर जी से ऐलक दीक्षा अंगीकार की। आपका शुभ नाम रखा गया वीरसागर जी। इस प्रसंग विशेष पर करीबन दश हजार की जनसंख्या उपस्थित थी। ___वहाँ से विहार करने के बाद आप देहली पधारे। सावन सुदी ग्यारह के दिन आपने प्रथम केशलुंचन किया। घास-फूस की तरह आपने थोड़े ही समय में अपने केश उखाड़ दिये। उस समय आप ऐसे शान्त थे मानो प्रभु वीतराग प्रतिमा हो। केशलोंच पूर्ण होते वक्त आपकी जय जयकार से आकाश गूंज उठा। ___अगहन वदी 12 सं. 2025 में आपका दूसरा केशलोंच हुआ। आपने अपने गुरुवर्य श्री 108 विमलसागर जी से मुनिदीक्षा हेतु प्रार्थना की। सुवर्ण अवसर हाथ लग गया। आप मुनिदीक्षा से विभूषित हुए। आपका शुभ नाम रखा गया मुनि श्री 108 सुमतिसागर जी। वाकेय में आप हैं सुमति के भंडार, सुमति के देने वाले गुरुवर्य। यात्राओं की ओर
आप अपनी पत्नी रामश्रीदेवी के साथ तीर्थराज सम्मेदशिखर वन्दनार्थ गये थे। वहाँ आपने ब्रह्मचर्यव्रत लिया था। ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार से आपके भविष्य की उन्नति का मार्ग बिलकुल साफ और स्पष्ट हो गया।
आपने सम्मेदशिखर के अलावा पावापुरी, राजगृही, चंपापुरी, हस्तिनापुर, अयोध्या, सोनागिर, बड़वानी, गजपंथा, गिरनारजी, तारंगाजी, पावागढ़, पालीताणा आदि एवं कर्नाटक राज्य के समस्त तीर्थक्षेत्रों की वन्दनाएं की हैं। मुनि अवस्था की कुछ उल्लेखनीय घटनायें
स्थल बाबरपुर, जिला इटावा । उसमें रहता था एक कलाकार । दैववशात् वह पागल हो गया। उसे पकड़कर कुछ भाई आपके पास आये। आपने - गुरुदेव ने अपने कमण्डल से थोड़ा सा जल निकाला, मंत्र पढ़ा और उस जल को पागल कलाकार पर छिड़क दिया।
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1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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