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तो उसका पाप तो दूर न होगा, परन्तु आपमें घृणा, क्रोध, द्वेष आदि को अवश्यमेव स्थान प्राप्त हो जायेगा ।
5. धन, संपत्ति और मित्रता को पाकर घमंड न करें, क्योंकि घमंड कभी साथ नहीं देगा।
6. क्षण-क्षण में जीवन व्यतीत होता जा रहा है। हम मृत्यु की ओर बढ़ते जा रहे हैं। बहुत ही शीघ्र जीवन समाप्त हो जायेगा, इसलिए संसार, शरीर एवं भोगों से आसक्ति हटाकर शुद्धात्मा में लीन होने के लिए प्रयत्नशील होना चाहिये।
अन्तिम बात
है महान् आत्मन्! आप प्रबल भेदविज्ञानी हैं। संसार के प्रति आप उदासीन । आप त्याग और संयम के महान् उपासक हैं। आप धीर-वीर हैं। आपकी
वजह से आज सोनागिरि सिद्धक्षेत्र दिन दूना रात चौगुना बढ़िया से बढ़िया होता जा रहा है। आपकी निर्मल प्रभावोत्पादक वाणी सुनकर सोनागिर के लिए दान का अस्खलित प्रवाह बह रहा है। उदासीन आश्रम, चौबीस टोकों की रचना, गिरनार सिद्धक्षेत्र पहाड़ की प्रतिकृति इत्यादि की नींव पडी है, जिनके लिए आपका आभार सदैव ही समाज की ओर से जितना माना जाय थोड़ा ही होगा।
प्रबल शक्तिमान आचार्य भगवन्! आपकी कठोर तपश्चर्या से हम अवश्यमेव प्रभावित हैं। भीषण झंझावातों में भी आपके होठों की मुस्कराहट हमारे लिए पथ-प्रदर्शिका है।
सिन्धु! आप ज्ञान, ध्यान, तप की उपासना में हमेशा ऐसे रत रहते हैं, जिनके वर्णन के लिए शब्द नहीं हैं।
धन्य हैं आप ! धन्य हैं हमारे प्रिय गुरुवर्य सुमतिसागर जी । हम परम कृपालु जिनेन्द्रदेव से प्रार्थना करते हैं कि आप शरीर से स्वस्थ रहकर रत्नत्रय की साधना कुशलता से करते रहें और अंतिम लक्ष्य मोक्षगति की प्राप्ति आपकी आत्मा के द्वारा एक न एक दिन हो जाए । आपके चरणों में कोटिशः नमस्कार ।
ईडर (गुजरात)
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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बाबूलाल धूनीलाल गांधी
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