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क्रोध तो देखने में नहीं आता तथा प्रकृति शान्त एवं नम्र है, ऐसे वीतरागी साधुओं के प्रति अगाध श्रद्धा है। आचार्य श्री कुन्यसागर जी महाराज
घरकों के मातृत्व-सुख की तमन्ना पूरी हुई तो छविराज फूले नहीं समाये। पिता बन जाने की खुशी में सं. 1972 माघ शुक्ला पंचमी (बसंत पंचमी) को धोवा ग्राम (ग्वालियर) की गलियों में उन्होंने बाजे बजवा दिये। गांव की सयानी औरतों ने बधाई गाते हुए सीख दी-लाला! ललन का नाम बदरी रखना बदरी। गाँव की गलियों में खेलकर स्कूल पहुंचा तो पंडितजी ने पुकारा-बद्रीप्रसाद!
स्कूल की पढ़ाई हुई तो बद्रीप्रसाद का जी गाँव छोड़ने को मचलने लगा। TE किताबों के दो अक्षर पढ़ते ही उसने जान लिया कि जिन्दगी घर में खपाने
के लिए नहीं पंचपरावर्तन मिटाने के लिए मिली है। जीवन को राह मिली पर गति बाकी थी। फिर मिला नेत्रों को सुखकारी पूज्यपाद आचार्य श्री विमलसागर महाराज का दर्शन और जीवन को मिली गति। आचार्य श्री ने । भव्यात्मा पर अनुग्रह करते हुए क्षुल्लक-दीक्षा प्रदान की। कुछ समय बाद सम्मेदशिखर में समस्त परिग्रहों को समाप्त करने वाली निर्ग्रन्थ मुनि दीक्षा
प्रदान कर दी और आपका नाम 'कुन्थुसागर' रखा। आप भी चारित्र की सीढ़ियों । में स्थिर पग बढ़ाते हुए अपने नर जन्म की सफलता में जुट गये क्योंकि जीवन 4 का सार चारित्र है। कहा है
थोवम्हि सिक्खदे जिणइ बहुसुदं जो चरित्त संपुण्णो।
जो पुण चरित्तहीणो किं तस्स सुदेव बहुएण।। ____ गुरु सेवा करते हुए आपने सतत् स्वाध्याय से जिनागम के रहस्य को - हृदयंगम कर लिया तथा सुज्ञानदर्पण पुस्तक लिखकर अपनी विद्वत्ता से समाज 1 को विदित कराया। जिन शासन की प्रभावना की। मुनि 108 श्री अजितसागर जी महाराज
सं. 1958 में ग्राम कूप जिला भिण्ड में श्रीगणेशीलाल जी के घर पर - श्री चुन्नीलाल जी ने जन्म लिया था। आपने मिडिल शिक्षा प्राप्त करके गृहस्थ' धर्म में प्रवेश किया तथा मुनि विमलसागर जी से सं. 2012 में अलवर में क्षुल्लकTE दीक्षा ग्रहण की तथा सं. 2017 में मिण्ड में मुनि-दीक्षा धारण की। गुरु ने 12
आपका नाममा ने अजितसागर रखा। आपने जैनागम के ग्रन्थों का स्वाध्याय प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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