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भावनायें हैं। इनका वर्णन तथा अनगार भावना का विशेष वर्णन इस चौथी किरण में 294 पृष्ठों में है ।
पंचम किरण में वृहद् समाधि अधिकार है। मूल गुणों का सम्यग्दर्शन आदि का पालन करते हुए कषायादि को नष्ट कर संयममय जीवन बिताने पर आत्म परिणति शुद्धि की ओर झुक जाती है तब ध्यान, योग रूप समाधि करण होता है। इस पांचवी भावना में मरण के 17 भेद-प्रभेदों का वर्णन 266 पृष्ठों में है ।
इस प्रकार मुनि धर्म का विवेचन 1002 पृष्ठों में पांच अध्यायों में पूर्ण होता है। इससे आगे श्रावक धर्म का वर्णन है। श्रावक अणुव्रतों का पालन करता है।
उत्तरार्द्ध की प्रथम किरण सम्यग्दर्शनाधिकार, 118 पृष्ठों में है। द्वितीय किरण पाक्षिकाचाराधिकार है। पाक्षिक श्रावक के लिये अपेक्षित नियम व्रत आदि का वर्णन इस किरण में 216 पृष्ठों में है। तृतीय किरण दर्शन प्रतिमाधिकार है। जिसमें नैष्ठिक श्रावक की दर्शन प्रतिमा और व्रत प्रतिमा का स्वरूप, भेद और प्रभेद 218 पृष्ठों में वर्णित है ।
चतुर्थ किरण - सामायिकादि व नवमी परिग्रह त्याग प्रतिमाधिकार में 9 सामायिकादि परिग्रह त्याग का स्वरूप उसके भेद-प्रभेदों का वर्णन है। सामान्यतः 10वीं 11वीं प्रतिमा का स्वरूप भी इसमें | पर 10-11वीं प्रतिमाधारी साधक क्षुल्लक और ऐलक रूप में होने से उनका विशेष वर्णन पंचमी किरण में उत्तम नैष्ठिक साधकाधिकार के नाम से दिया गया है। इस प्रकार श्रावक धर्म का वर्णन करने वाला उत्तरार्द्ध की 5 किरण 754 पृष्ठों में है ।
इस प्रकार 'संयम प्रकाश' ग्रंथ के 10 भागों में उक्त वर्णन 1756 पृष्ठों
में हैं।
इसके अतिरिक्त आचार्य श्री की और अनेक रचनायें हैं। श्रावक धर्म प्रकाश - सामान्य रूप से, श्रावक धर्म प्रकाश-विशेष रूप से, 'आध्यात्मिक ग्रंथ संग्रह', 'आत्मसाधन मार्तण्ड', 'आत्म सद्बोध मार्तण्ड', 'अमक्ष विचार मार्तण्ड'. 'सद्बोध मार्तण्ड', 'निर्जरामार्तण्ड', 'निजानन्दमार्तण्ड', 'विवेकमार्तण्ड, स्वभाव बोधमार्तण्ड आदि है जो संसारी जीवों को आत्मा का अनुभव करा कर उसका कर्तव्य सिखाते हैं।
सम्पादक, वीरवाणी
जयपुर
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
भंवरलाल न्यायतीर्थ
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