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यामानानानानााादा
आचार्यश्री शान्तिसागर स्तवन
(1) मुनिराज शान्तिसिन्धु धुलेवा में न आते। तो हम यहां ये धर्म दिवस व्यर्थ गंवाते,
नहीं लाभ उठाते।। चमके हैं अहो भव्य धन्य हमारे। आचार्य शान्तिसिन्धु ऋषभदेव पधारे, भवि जीव को सत धर्म का उपदेश सुनाते ।। मुनि.......................... || इस कामदेव शत्रु के हैं आप विजेता। हैं बाल ब्रह्मचारी अहो धर्म के नेता, संसार भोग हैं असार इस्को बताते।। मुनि............................. आये हैं मुनीराज मुनीधर्म बताने। अरु वीर के सत धर्म को भारत में जगाने, सोते हुए जिन धर्मियों को आके न जगाते।। मनि .................................................।। माता श्री मणिका के मुनिराज दुलारे। श्री भागचन्द जैन के हैं आप सितारे, छाणी है जन्मस्थान मने! आपका ध्याते।। मनि ........................................................|| अये जैन धर्मियो! तो कुछ धर्म लाभ लो। निज जन्म को गिरते हुए अब तो सम्हाल-लो। हम सबकी यही प्रार्थना तन-मन से सनाते। मुनि...... अवसर गया वो बाद में वापिस न आयेगा। पाया न धर्म लाभ तो सब व्यर्थ जायेगा, कहता 'महेन्द्र हम उन्हीं को शीस नवाते।। मुनि...
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प्रथममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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