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भजन
गुरु शान्ति सिन्धु महाराजा, अमृत बेन बोलो ने। मैं आयो दरश के काजा, प्रेम रस घोलो ने।। मेवाड देश सोठावणो. छाणी नग्र शुभ ग्राम। भागचन्द घर अवतरे, हर्षनो नहीं पार।। अमृत.........
..............|| मणि माता के कूख में, आयो देव अवतार । केवल रतन जनमिया, आनन्द को नहिं पार ।। अमृत..... भोग रोग सम जान के, माने नहीं अगार। मोह कुटुम्ब से छोड़ के. गये ऋषभ के द्वार।। अमृत...........................................। ब्रह्मचर्य को धर के, शुभ कीना ये विचार। सम्मेदशिखर भेट्या बना, गयो जन्मारो हार।। अमृत.
.............|| सम्मेदशिखर को भेट के, बागड़ देश सुधार। ग्राम गढ़ी के मध्य में, क्षुल्लक भये तिहवार।। अमृत...... सागवाड़ा के मध्य में, आदिनाथ अवतार। जिन दीक्षा को धार के, कीनो देश सुधार ।।
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अमृत.......
मेवाड़ बागड़ देश में, कीनो आप उद्धार। खड़क गुजरात के माहि ने, विद्या को कियो प्रचार।। अमृत........ ........................
...............|| क्षुल्लक 'धर्म' आयो दर्शको, भेट्या श्री महावीर। शान्ति-सिन्धु के चरण में, नित्य नमावे शीश।। अमृत......................... ||
७. धर्मसागर महाराज
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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278माया