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जयमाला
द्वादश तप दशधर्म, आवश्यक षट् करें,
___ पाले पंचाचार, त्रिगुप्ति मन धरे। धारे ये छत्तीस, आचारज गुणिन को, वंदो श्री आचार्य शान्तिवर गुणिन को।। शान्तिसागर आचार्य जी, तुम हो गुण की खान । अल्पबुद्धि गुणमालिका, भाषा करूँ बखान ।। आचार्य शान्तिसागर दयाल, भव जीवन के हो रक्षपाल। जय त्रस थावर रक्षा करंत, भवसागर भविजन को तिरंत ।। मेवाड़ प्रान्त सुन्दर सुजान, छाणी नामक एक ग्राम जान। हुमड़ जाति श्री भागचन्द, आचार्यवर्य उनके ही नंद।। माता माणिक बाई प्रवीण, तसु कुक्ष जन्म आचार्य लीन। उन्नीस शतक चालीस जान, तामें पुनि योगहु पांच मान।। कार्तिक वदी एकादशि प्रवीण, नक्षत्र हस्त में जन्म लीन। आनन्द भयो तब पुर मझार, घर घर मंगल गावें सु सार।। बढ़ते निशदिन ज्यों द्वितीय चन्द्र, भावी उन्नत कैवल्यचन्द्र। रहते थे बालपने विरक्त, नहीं व्याह कियो नहिं भये गृहस्थ।। पुनि नेमिनाथ का चरित सार, मन में इस विधि कीनो विचार । हैं विषयभोग अति दुःखकार, संसार सकल दीखे असार।। केशरिया जी को कर प्रणाम, ले ब्रह्मचर्य को प्रण सुठान। एक ग्राम सागवाड़ा सु थान, मुनिदीक्षा आप लही सु आन।। कीनो अनेक देशनि विहार, उपसर्ग भये तब कई बार। कर्मों की गति का लखि विकार, वे सहे सभी समता सुधार।। गुरु पद में बीते कई साल, उपदेश देय भविजनहि तार। इन्दौर किया जब चतुर्मास, तहाँ भव्यजनों की हरी प्यास।। श्री कूट सिद्धवर सिद्धक्षेत्र, आये करते बहु पुर पवित्र ।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थी
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