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प्रशान्तमूर्ति आचार्य 108 श्री शान्तिसागर
महाराज (छाणी) की पूजा समिति पंच व्रत पंच त्रिगुप्ति धारते.
आप तिरे, अरु पर को भी गुरु तारते। ऐसे श्री आचार्य शान्तिसागर गुणी.
करूं स्थापना आहवानन सन्निधि भणी।। ॐ हीं आचार्य श्री शान्तिसागर अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याहवाननम्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। (परिपुष्पांजलि क्षिपेत)
शुद्ध प्रासुक नीर निर्मल. लेयकर झारी भरो. चरण तल त्रय धार देके, जन्म मृत्यु जरा हरो।। आचार्यवर श्री शान्तिसागर के चरण चित लायके।
पूजा रचाऊँ भावसेती शुद्ध मन हलसाय के।। ॐहीं आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा।
केशर कपूर मिलाय चन्दन, घिस कटोरी लाय के। चरण चरचों मैं गुरू के, भवाताप नशाय के।। आचार्यवर श्री ..........
.......।। ॐही आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यो चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।।
उज्जवल अखण्डित लेय अक्षत, धोय थाली में भरो। पद अखय की प्राप्ति हो, इस हेतु चरणों में धरो।। आचार्यवर श्री ......
................. || ॐहीं आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यः अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।।
मकरंद लोचन विविध पुष्प, स लाय थाली में भरो। कर समर्पित चरण आगे, कामबाण सभी हरो।।
आचार्यवर श्री ...... ॐही आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
पकवान नाना भाँति के, अति मधुर रसमय लायकर। क्षुधारोग विनाश होते, आमके गुण गायकर।।
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ ICICLETECEESLELEनाताना HIFIENTIFIELFIFIELFIEIFIEEET
* की आचाकरी लावन्न वरवेष धातु निर्यपालिी मारी।
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