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ठहरते हुए नवागांव आये। यहां ज्येष्ठ वदी9 को महाराज श्री का केशलोंच हआ। उस समय खडग के सब जैनी भाई आये थे महाराज श्री ने धर्मोपदेश देकर अनेकों को सिगरेट, बीड़ी, सोडावाटर, बाजार का बर्फ, रात्रि भोजन आदि का त्याग कराया। यहां से पुनः भाणदा होकर महाराज श्री अपने
जन्म स्थान छाणी पधारे। छाणी में उन दिनों ठाकुर मानसिंह जी शासक - थे, जिनका उल्लेख हम पूर्व में कर आये हैं। वे महाराज के बड़े भक्त बने F और महाराज की प्रेरणा से प्रभावित होकर दशहरे पर होने वाली भैंसे की
बलि को हमेशा के लिये बंद कर दिया। छाणी में कुछ दिन ठहर कर महाराज देवल पधारे, देवल से विहार कर आप सुरपूर पधारे। यहां पर भी चतुर्थकालीन प्राचीन प्रतिमा जिनमंदिर में है। यह स्थान डूंगरपुर के पास है, यहां से डूंगरपुर आये। यहां दो दिन ठहरे, श्रावकों को उपदेश देकर यथोचित नियम व्रत दिलाये। यहां से विहार कर बिछिवाडा आप पधारे। यहां पर पति के मरने पर स्त्रियों को काले कपड़े पहनने का त्याग कराया और सफेद कपड़े पहनकर मंदिर देवदर्शन प्रतिदिन करने का नियम बनाया।
नागफणि पार्श्वनाथ
बिछीवाड़ा से महाराज नागफणि पार्श्वनाथ नाम के अतिशय क्षेत्र के दर्शनार्थ पधारे। यह स्थान पहाड़ों के बीच बहुत मनोज्ञ प्राकृतिक शोभा वाला है रमणीय अतिशय क्षेत्र है। यहां पार्श्वनाथ भगवान तथा धरणेन्द्र, पद्मावती
की अतिशययुक्त प्रतिमा जिनमंदिर में है। यहां पर पहाड़ के भूगर्भ से प्रतिमा TE जी के नीचे के भाग से जल का स्रोत बहता हैं, तीन कुण्ड और गोमुखी - बनाये गये हैं। गोमुखी से पानी निकलकर क्रमशः तीनों कुण्डों में भर जाता
है। और आगे जाकर पानी समाप्त हो जाता है। यात्रियों के बढने पर स्वतः ही पानी बढ़ता है और यात्रियों के कम होने पर स्वतः कम हो जाता है। पानी शुद्ध निर्मल है। यात्रियों के ठहरने, बनाने आदि की व्यवस्था है। यहां के दर्शनकर महाराज श्री विहार करते हुए पुनः गुजरात में प्रविष्ट हुए। टांकाद, भीलोड़ा, चिन्तामणि पार्श्वनाथ मुडेटी आदि गांवों में विहार करते हुए गोरेल पधारे। ___यहां पर ईडर की समाज के भाई महाराज श्री को चातुर्मास की प्रार्थना
0 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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