________________
दूसरा चातुर्मास
ऋषभदेव के समाज ने पुनः दूसरा चातुर्मास शान्तिसागर महाराज का । यहां कराया। उस चातुर्मास में मैं आचार्य कुन्थुसागर जी महाराज द्वारा श्री LE कुन्थुसागर दिगम्बर जैन बोर्डिंग के बुलाने पर डूंगरपुर चला गया था और
बोर्डिंग के सुपरिडेंट का कार्य करने लगा था। ऋषभदेव में इस चातुर्मास
में श्री शांति सेवा संघ के अन्तर्गत ही आचार्य शांतिसागर दिगम्बर जैन बोर्डिंग पE के नाम से एक छात्रावास खोला। मुझे डूगरपुर से ऋषभदेव मेरे साथियों :
ने बुला लिया। मैंने अपनी दुकान का काम करते हुए सेवा संघ पुस्तकालय और बोर्डिंग का सब काम सम्भाल लिया। इन संस्थाओं का काम जोरों से चला। ऋषभदेव में दिगम्बर जैन विद्यालय बहुत वर्षों से चल रहा था। इसके सर्वे सर्वा स्व. नाथूलाल जी वाणावत थे। इस विद्यालय के अन्तर्गत इन्हीं आचार्य शान्तिसागर जी के नाम से कन्यापाठशाला पहले से चलती थी। बहुत
वर्षों तक रात्रि को 11 बजे तक प्रतिदिन समय देकर मैंने पुस्तकालय और F- बोर्डिंग को प्रगति पथ पर लाने का अथक प्रयत्न किया। किन्तु कुछ लोगों 7 को हमारी संस्थाओं की प्रगति सहन नहीं हुई और समाज में बड़ा वितण्डावाद FI
खड़ा कर बोर्डिंग को विद्यालय में मिला दिया। इधर परिस्थिति वश मैं बाहर
सर्विस करने चला गया अतः मेरे ऋषभदेव से बाहर रहने से लाइब्रेरी व सेवा 7 संघ और वाचनालय का भार पं. फतहसागर जी "प्रेमी” तथा श्री पं. मोतीलाल
जी "मार्तण्ड" को सोहनलाल जी ने सुपुर्द किया। लेकिन आज इन संस्थाओं का नाम निशान नही है। बोर्डिंग के लिये तो मैं दक्षिण भारत में भ्रमण कर हजारों रुपये की सहायता लाया था। इस प्रकार मेरी वर्षों की साधना व सेवा तथा संस्थाओं की समाधि हो गई। जब यह याद आता है तो हृदय दुख से भर जाता है। इस प्रकार शान्तिसागर जी महाराज के नाम से समाज सेवा करने वाली इन संस्थाओं के नाम ही शेष हैं। बाकी सब कालकवलित हो गया।
15454545454545454545454545454545454545454545
समाधिमरण ___उन दिनों के जैन समाचार पत्रों से आ. शान्तिसाग जी महाराज (छाणी) के समाधिमरण के संबंध में अन्वेषण करने से जो विवरण मिले, उन्हें मैं यहां पाठकों की जानकारी के लिये प्रस्तुत करत
-
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
244
545454545454545454545!