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1545455456457456457454545454545454545 :ऋषभदेव में
ऋषभदेव में महाराज श्री के स्वर्गवास की खबर आई तो समाज में भारी 1 दुःख व शोक छा गया। मैं उस दिन बाहर गाँव में गया था। श्री सोहनलाल FI 4 जी ने पत्र व आदमी भेजकर मुझे बुलाया। ऋषभदेव में हमने जुलूस 4
निकालकर शोक सभा की और शोक प्रस्ताव के साथ उनका स्मारक बनाने का निर्णय लिया गया। इसके लिये मैं और श्री सोहनलाल जी सर्राफ सागवाड़ा गये। वहां पर समाज की मीटिंग बुलाई गई और स्मारक बनाने का निश्चय किया।
TE स्मृतिग्रंथ की योजना
श्री मूलचंद जी किशनलाल जी कापडिया सूरत शान्तिसागर जी महाराज पके बड़े भक्त थे। उन्होंने जैन मित्र में अपना संपादकीय लेख लिखकर समाज TE का ध्यान स्मतिग्रंथ तैयार कराने हेत आकर्षित किया। ऋषभदेव में मैंने इसके
लिये दो बार समाज की मीटिंग बुलाई थी। कापड़िया जी भी मीटिंग में सूरत जसे आये थे। स्मृति ग्रंथ की योजना बनी तथा उसकी रूपरेखा तैयार हुई और 4 TE उसके संपादन का भार मुझे तथा मेरे सहायक पं. दौलतराम जी शास्त्री को LE दिया गया।
खेद है कि श्री नाथूलाल जी वाणावत ने दूसरी मीटिंग में इस योजना को रद्द कर चन्द्रगिरी पर ऋषभदेव में उनका स्मारक बनाने का निर्णय कराया। फलस्वरूप न तो स्मृति ग्रंथ बना और न स्मारक बना। प्रसन्नता है कि 46 वर्षों के पश्चात् स्व. शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) के शिष्य, प्रशिष्य परम्परा को श्री उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज अब उन शान्तिसागर महाराज का स्मृतिग्रंथ तैयार करा रहे हैं, और इसमें मेरा सहयोग भी लिया गया है। इसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ।
कामना सकल गुण निधियो, छाणिजः शांतमूर्तिः, विबुधनिचयसेव्यो, भागचन्द्रस्य पुत्रः, प्रविदलितकषायों, निस्पृही राममुक्तः। जयव्रतुजयतुसूरिः शांति, सिंधुर्यतीशः।।
पं. महेन्द्र कुमार 'महेश' प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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