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जप्रतिष्ठा, वैद्यक, ज्योतिष, गणित, मंत्र, तंत्रयंत्र, तथा धर्मशास्त्र के ज्ञाता, 9
मधुर किन्तु ओजस्वी वाणी में बोलने वाले वक्ता, पण्डितों के पण्डित, सफल साधक, जीव मात्र के प्रति अहिंसा का भाव रखनेवाले, न किसी के अपने न पराये, न सपक्षी न विपक्षी, स्वाभिमान, निर्भीकता से धर्म साधन करनेवाले, विलासों एवं भोगों से अछूते, इन्द्रियों का दमन करने वाले, कषायों का निग्रह करने वाले, समाज के गौरव एवं देश के अनमोल रत्न, तपोनिधि, अध्यात्म - योगी श्री 108 मुनि नेमिसागर जी का जन्म मंगलमय एवं परम पवित्र श्री यशोदा देवी की पुनीत कुक्षि से पिता श्री मुन्नालाल जी के पुत्र के रूप में विक्रम संवत् 1960 के फाल्गुन शुक्ला द्वादशी रविवार को पठा (टड़ा) ग्राम में हुआ। ____ आप बाल्यकाल से ही बाबा गोकुलप्रसाद जी, पूज्य गणेशप्रसाद वर्णी एवं पूज्य मोतीलाल जी वर्णी के सान्निध्य में रहकर उक्त गुरुजनों की कृपा द्वारा संवत् 1978 में पूज्य पिताजी का स्वर्गारोहण हो जाने के कारण घर
पर ही रहकर अनेकों विद्याओं के अथाह वारिधि बने। - आपके बचपन का नाम हरिप्रसाद जैन था। आपने विवाह का परित्याग
कर ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। 8 वर्ष की आयु में पाक्षिक व्रतों तथा 15 वर्ष TE की आयु में नैष्ठिक श्रावक के रूप में दूसरी प्रतिमा ग्रहण की। सन् 56 में
इन्दौर आए। विक्रम संवत् 1996 में माघ कृष्णा प्रतिपदा गुरुवार मु. पटना, पोस्ट रहली, जिला सागर के जलयात्रा महोत्सव परी 108 मुनि पदमसागरजी द्वारा सप्तम प्रतिमा ग्रहण की तथा आपका नाम रखा गया श्री विद्यास
फाल्गुन शुक्ला 3 सोमवार संवत् 2016 में म.प्र. के देवास जिलान्तर्गत लहाखा नामक ग्राम में श्री पंचकल्याणक महोत्सव पर दीक्षा कल्याणक के समय श्री 108 मुनि आचार्य योगेन्द्रतिलक शान्तिसागर जी महाराज द्वारा आपने 11वीं प्रतिमा धारण की और नाम पाया श्री 105 क्षुल्लक नेमिसागर जी। विक्रम संवत् 2040 की शुभ मिति मार्गशीर्ष शुक्ला 15 को आचार्य : योगेन्द्रतिलक शान्तिसागर जी महाराज द्वारा मुनिदीक्षा ग्रहण की।
आपने लगभग 16 वर्ष की अवस्था से लिखना आरम्भ किया।आपने अपनी मनोवृत्तियों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया। आपका गद्य एवं पद्य दोनों
पर समान रूप से अधिकार रहा। आपकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं :511. श्रावक धर्म दर्पण प्रकाशित
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । नादानामाLELETELETELELETE -FRE
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