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आचार्य पद
गिरीडीह में शांतिसागर जी महाराज का संघ अच्छा बन गया था, कुछ और त्यागी, ब्रह्मचारी बाहर से आ गये थे। समाज ने व त्यागियों ने मिलकर बड़े समारोह के साथ शांतिसागर जी महाराज को आचार्य पद दिया। उस समय समाज में बड़ा आनंद छा गया। अब मुनि शांतिसागर से वे आचार्य 108 श्री शांतिसागर जी महाराज बन गये। लोगों पर महाराज श्री का प्रभाव बढ़ने लगा और आपका चारित्र व तप उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होता गया।
विक्रम संवत् 1983 का चातुर्मास समाप्त कर आचार्य शांतिसागर जी महाराज गिरीडीह से मगसर वदी 1 को विहार कर पालंगज आये, यहाँ का राजा क्षत्रिय होने पर भी जैन धर्मपालन करता था। यहाँ उनके मंदिर में पार्श्वनाथ भगवान की मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान हैं। यहां से आप पुनः शिखरजी आये, यहां पर मुनि वीरसागर जी महाराज कोडरमा से आकर मिल गये। शिखरजी में 13 दिन रहे तीन वंदनायें की। फिर वहां से पुनः गिरीडीह होकर वैद्यनाथ धाम जो कि वैष्णव संप्रदाय का बड़ा तीर्थ है आये, वहां से मंदारगिरी की वंदना कर भागलपुर, चंपापुर, नवादा, गुणावा होते हुए महाराज पावापुरी आये. यह तीर्थ भगवान महावीर का निर्वाण स्थान है, यहां से कुण्डलपुर के दर्शन करते हुए महाराज राजगृही पधारे। यह राजगृही पंच पहाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां पर गरम जल के झरने व कुंड हैं, पर्वतों से प्राकृतिक गरम जल बहकर कुंडों में आता है। यहीं पर विपुलाचल पर्वत से भगवान महावीर की प्रथम देशना हुई थी।
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गया की ओर
राजगृही में गया की जैन समाज के बहुत से भाई गया में होने वाली पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में महाराज श्री को निमंत्रित करने आये. महाराज श्री ने समाज की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और गया की तरफ प्रस्थान कर TE
दिया। महाराज श्री की स्वीकृति से गया समाज में बड़ी प्रसन्नता उत्पन्ना ' हुई और समस्त संघ को राजगृही से विहार कराके गया जी ले गये। गया 4 TE पहुंचने पर समाज ने आचार्य संघ को बड़े स्वागत से जुलूस निकालकर ले
1 गये।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ -। CELEMEEEEEHदाना