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तरह से चल रहे थे, यहां से विहार कर आप रतलाम आये। यहां दो दिन रुककर आपने बागड़ प्रान्त की तरफ विहार किया। यहां से बागड़ प्रान्त
खान्दू नाम के गांव में महाराज पधारे। यह खान्दू बांसवाड़ा जिले में एक प्रसिद्ध गांव है, जहां जिन मंदिर तथा नरसिंहपुरा जाति के अच्छी संख्या में दिगम्बर जैन रहते हैं। वर्तमान में माही नदी के बांध में यह गांव डूब जाने से सबके सब बांसवाड़ा नगर पधारे। यहां पर सेठ विजयचंद जी का स्थापित किया हुआ दिगम्बर जैन विद्यालय उन दिनों अच्छा चल रहा था । श्री पंडित राजकुमार जी हाटपीपल्या वालों के द्वारा पढ़ाये हुए जैन छात्र सर्वार्थसिद्धि तक पढ़कर धर्म का ज्ञान प्राप्त किये थे। वहां बांसवाड़ा के मंदिर में महाराज श्री का केशलोंच हुआ और धर्म की प्रभावना हुई। यहां से विहार कर महाराज श्री तलवाड़ा और परतापुर ठहरते हुए सागवाड़ा पहुँचे । सागवाड़ा में श्राविकाश्रम स्थापित किया। सागवाड़ा और परतापुर के चातुर्मास आदि का वर्णन हम पूर्व विवरण में दे चुके हैं। अतः यहां उसका केवल संकते ही दे रहे हैं। यहां से चातुर्मास करने के लिये महाराज श्री गढ़ी, अर्थना, डबूका आदि गांवों में ठहरते हुए पुनः परतापुर पधारे और यहां समाज के आग्रह से चातुर्मास किया। यहां पर एक गमनीबाई रहती थी, जो कि महाराज श्री को गयाजी से ही चातुर्मास के लिये यहां पर लाई थी। गमनीबाई ब्रह्मचारिणी, व्रती व धर्मात्मा थी। यहां पर चातुर्मास में महाराज श्री ने लोगों को धर्मोपदेश द्वारा पूजन, प्रक्षाल तथा देवदर्शन का महत्व समझाकर पूजन, प्रक्षाल के नियम दिलवाये और मंदिर में पूजन प्रक्षाल में जो अड़चन आती थी, उस अड़चन को दूर कराया। यहां के चातुर्मास में केशलोंच हुए महाराज के त्याग, तपश्चर्या तथा धर्मोपदेश का अच्छा प्रभाव पड़ा, जिससे समाज ने यहां भोज में विलायती शक्कर का प्रयोग बंद किया और कई श्रावकों ने श्रावकोचित नियम लेकर जैन धर्म की प्रभावना की। यहां पर श्री शांतिसागर जी महाराज ने बड़े कठिन परिश्रम से शांतिविलास नामक पुस्तक का संग्रह किया, जिसमें अतीव उपयोगी और शिक्षाप्रद 1000 दोहे तथा 1000 सवैये संग्रह किये थे। खेद है कि यह संग्रह कहीं मिला नहीं, अगर वह प्रकाशित हो जाता तो बहुत काल तक समाज के काम आता पर आज वहीं नहीं है, अतः उसका केवल नाम मात्र का ही संकेत दे रहा हूँ। महाराज श्री की प्रेरणा
और
से यहां की समाज ने 1000 धर्म की प्रथम भाग की पुस्तकें मंगवाकर बागड़
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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555555555555555號