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क्षुल्लक बनने के पश्चात् परतापुर की समाज. ने गढ़ी आकर आपको चातुर्मास का निमंत्रण दिया, फलतः आप परतापुर विहार कर गये और वहां चातर्मास किया। यहां पर आपने 32 दिन के उपवास किये।
अतिशय
यहां पर एक चमत्कार हुआ कि भाद्र शुक्ला 14 रात्रि को ताले लगे बंद मंदिर में स्वतः नगाड़े बजने लगे और उन दिनों गांव में प्लेग था सो समाप्त हो गया। इससे क्षुल्लक जी के पुण्य का प्रभाव लोगों पर पड़ा और लोगों की आपके प्रति श्रद्धा में वृद्धि होने लगी। फिर वहां से आप अरथूणा गये वहां के जागीरदार ने मांस मदिरा त्याग किये और वहां जो मैंसे की बलि पास के बुकिया गांव में होती थी वह बलि बंद करवाई। ठाकुर साहब ने जिन मंदिर की प्रतिष्ठा कराके प्रतिमा विराजमान कराई। उन दिनों वहां आपका केशलोंच हुआ, पांच हजार जनता एकत्रित हुई थी। आपके उपदेश के प्रभाव से अनेक भील वगैरह जाति के लोगों ने मांस मदिरा का त्याग किया। वहां से विहार कर आप टाकटुंका, चिन्तामणि पार्श्वनाथ, ईडर, 51 तारंगाजी श्री केशरियाजी, नयागांव होते हुए छाणी पधारे, यहां एक सरस्वती LE
भंडार खुलवाया। वहां से विजय नगर, देरोल बड़ाली पार्श्वनाथ होते हुए पुनः -1 ईडर आये। ईडर से आसपास के गांवों में विहार करते हुए आप पुनः सागवाड़ा ।
आये।
सागवाड़ा यह स्थान आचार्य शांतिसागर जी का श्रावक अवस्था से लेकर ब्रह्मचारी, क्षुल्लक, मुनि और आचार्य अवस्था में हर प्रकार से आपके धर्मसाधना का केन्द्र रहा है। यहां पर उपदेश देकर एक श्राविकाश्रम की स्थापना करवाई वह दिन श्रावण शुक्ला पूनम संवत् 1980 का था।
मुनि दीक्षा
भाद्रमास चल रहा था सागवाड़ा की समाज धर्म लाभ ले रही थी अब
भाद्र मास का पर्युषण पर्व आया और क्षुल्लक जी के मन में वैराग्य की लहर TE दौड़ी और आप शीघ्र सम्पूर्ण परिग्रह त्याग मुनि बनने की तीव्र अभिलाषा करने TE
लगे। सोचने लगे कब वह घड़ी आये कि मैं सर्वपरिग्रह त्यागकर मनि जिसकी आत्मा में वैराग्य की ज्योति जाग जाती है उसे कोई शक्ति संसार
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ -1 PIPPIELTELEानानाना-नाना FIEFIFIEFIFFIFIFIFIFIFIFIFI